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|३३२ चिंतन की मनोभूमि
इस रूप में हम देखते हैं कि ईश्वर के पास जाने में, ईश्वरत्व की उपलब्धि करने में न रूप, न धन और न परिवार का ही बल काम आता है, और न बुद्धि का बल ही कारगर साबित होता है। द्रौपदी की बुद्धि का चातुर्य भी किस काम आया ? आखिरकार, हम देखते हैं कि उसके चीर को बढ़ाने के लिए देवता आ गए। किन्त हमें यह जानना होगा कि देवताओं में यह प्रेरणा जगाने वाला, उन्हें खींच लाने वाला कौन था ? इस प्रश्न का उत्तर है, सत्य । सत्य की दैवी शक्ति से ही देवता खिंचे चले आए।
दुनिया भर में उलटे-सीधे काम हो रहे हैं। देवता कब आते हैं? किन्त द्रौपदी पर संकट पड़ा, तो देवता आ गए। सीता को काम पड़ा, तो भी देवता आ पहुँचे। सीता के सामने अग्नि का कुण्ड धधक रहा था। उसमें प्रवेश कराने के लिए उसके पति ही आगे आए, जिन पर सीता की रक्षा का उत्तरदायित्व था ! राम कहते हैं—'सत्य का जो कुछ भी प्रकाश तुम्हें मिला है, उसकी परीक्षा दो!' ऐसे विकट संकट के अवसर पर सीता का सत्य ही काम आता है।
__इन घटनाओं के प्रकाश में हम देखते हैं कि सत्य का बल कितना महान् है। भारत के दर्शनकारों और चिन्तकों ने भी कहा है कि सारे संसार के बल एक तरफ हैं
और सत्य का बल एक तरफ है। निराधेय का आश्रय : सत्य :
___ संसार की जितनी भी ताकतें हैं, वे कुछ दूर तक तो साथ देती हैं, किन्तु उससे आगे जवाब दे जाती हैं। उस समय सत्य का बल ही हमारा आश्रय बनता है, और वही एक मात्र काम आता है।
जब मनुष्य मृत्यु की आखिरी घड़ियों में पहुँच जाता है, तब उसे न धन बचा पाता है, न ऊँचा पद तथा न परिवार ही। वह रोता रहता है और ये सब के सब व्यर्थ सिद्ध हो जाते हैं। किन्तु कोई-कोई महान् आत्मा व्यक्ति उस समय भी मुस्कराता हुआ जाता है, रोना नहीं जानता है! अपितु एक विलक्षण स्फूर्ति के साथ संसार से विदा होता है। तो बताएँ उसे कौन रोशनी देता है? संसार के सारे सम्बन्ध टूट रहे हैं, एक कौड़ी भी साथ नहीं जा रही है और शरीर की हड्डी का एक टुकड़ा भी साथ नहीं जा रहा है, बुद्धि-बल भी वहीं समाप्त हो जाता है, फिर भी वह संसार से हँसता हुआ विदा होता है ! इससे स्वतः स्पष्ट है कि यहाँ पर सत्य का अलौकिक प्रकाश ही उसे यह बल प्रदान कर रहा होता है। विश्व का विधायक तत्त्व : सत्य:
सत्य और धर्म का प्रकाश अगर हमारे जीवन में जगमगा रहा है, तो हम दूसरे की रक्षा करने के लिए अपने अमूल्य जीवन की भेंट देकर और मृत्यु का आलिंगन
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