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सत्य का विराट् रूप ३३१] इस प्रकार जैनधर्म देवताओं की ओर नहीं चला, अपितु देवताओं को मानव के चरणों में लाने के लिए चला है।
हम पुराने इतिहास की ओर अपने आसपास की घटनाओं को देखते हैं, तो मालूम होता है कि संसार की प्रत्येक ताकत नीची रह जाती है और समय पर असमर्थ और निकम्मा साबित होती है। किसी में रूप-सौन्दर्य है। जहाँ वह बैठता है, हजारों आदमी टकटकी लगाकर उसकी तरफ देखने लगते हैं। नातेदारी में या सभा-सोसायटी में उसे देखकर लोग मुग्ध हो जाते हैं। अपने असाधारण रूप-सौन्दर्य को देखकर वह स्वयं भी बहुत इतराता है। परन्तु क्या वह रूप सदा रहने वाला है? अचानक ही कोई दुर्घटना हो जाती है, तो वह क्षण भर में विकृत हो जाता है। सोनेजैसा रूप मिट्टी में मिल जाता है। इस प्रकार रूप का कोई स्थायित्व नहीं है।
इसके बाद, धन का बल आता है, और मनुष्य उसको लेकर चलता है। मनुष्य समझता है कि सोने की चमक इतनी तेज है कि उसके बल पर वह सभी कुछ कर सकता है। पर वास्तव में देखा जाए तो धन की शक्ति भी निकम्मी साबित होती है। रावण के पास सोने की कितनी शक्ति थी? जरासंध के पास सोने की क्या कमी थी? दुनिया के लोग बड़े-बड़े सोने का महल खडे करते आए और संसार को खरीदने का दावा करते रहे; संसार को ही क्या, ईश्वर को भी खरीदने का दावा करते रहे; किन्तु सोने-चाँदी के सिक्कों का वह बल कब तक रहा? उनके जीवन में ही वह समाप्त हो गया। सोने की वह लंका रावण के देखते-देखते ध्वस्त हो गई। धन की भी शक्ति है अवश्य, किन्तु उसकी एक सीमा है और उस सीमा के आगे वह काम नहीं आ सकती।
इससे आगे चलिए और जन-बल एवं परिवार-बल पर चिंतन-मनन कीजिए। मालूम होगा कि वह भी एक सीमा तक ही काम आ सकता है। महाभारत पढ़ जाइए और द्रौपदी के उस दृश्य का स्मरण कीजिए, जबकि हजारों की सभा के बीच द्रौपदी खड़ी है। उसके गौरव को बर्बाद करने का प्रयत्न किया जाता है, उसकी लज्जा को समाप्त करने की भरसक चेष्टाएँ की जाती हैं। संसार के सबसे बड़े शक्तिशाली पुरुष
और नातेदार बैठे हैं; किन्तु सब के सब जड़ बन गए हैं और प्रचण्ड बलशाली पाँचों पाण्डव भी नीचा मुँह किए, पत्थर की मूर्ति की तरह बैठे हैं। उनमें से कोई भी काम नहीं आया । द्रौपदी की लाज किसने बचाई? ऐसा विकट एवं दारुण प्रसंग उपस्थित होने पर मनुष्य को सत्य के सहारे ही खड़ा रहना पड़ता है।
- मनुष्य दूसरों के प्रति मोह-माया रखता है, और सोचता है कि यह वक्त पर काम आएँगे, परन्तु वास्तव में कोई काम नहीं आता। द्रौपदी के लिए न धन काम आया और न पति के रूप में मिले असाधारण शूरवीर, पृथ्वी को कँपाने वाले पाण्डव भी काम न आए। कोई भी उसकी लज्जा बचाने के लिए आगे न बढ़ा। उस समय एकमात्र सत्य का बल ही द्रौपदी की लाज रखने में समर्थ हो सका ।
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