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१४ चिंतन की मनोभूमि किया जाए ? मन यदि पवित्र एवं शुद्ध होता है, तो उसकी चंचलता में भी आनन्द आता है। मन को छानिए : ___पानी को छानकर पीने की बात जैन धर्म ने बड़े जोर से कही है। यों तो 'वस्त्र पूतं पिवेज्ज्लं' का सूत्र सर्वत्र ही मान्य है, पर इसी के साथ 'मनः पूतं समाचरेत्' की बात भी कही गई है। मन को छानने की प्रक्रिया भी भारतीय धर्म में बतलाई गई है। मन को छानने से मतलब है, उसमें से असदविचारों का कूड़ा-कचरा निकाल कर पवित्र बना लेना, उसे शुद्ध और निर्मल बना लेना। इसके लिए मन को मारने की जरूरत नहीं, साधने की जरूरत है, उसे शत्रु नहीं, मित्र बनाने की जरूरत है। सधा हुआ मन जब चिंतन-मनन, निदिध्यासन में जुड़ जाता है, फिर तो वह अपने आप एकाग्र हो जाता है। प्रयत्न करने की जरूरत नहीं। केवल इशारा ही काफी है, दिशानिर्देशन ही बहुत है। उसे पवित्र बनाकर किसी भी रास्ते पर दौड़ा दीजिए, आपको
आनन्द ही आनन्द आएगा, कष्ट का नाम भी नहीं होगा। बिखरे मन की समस्याएँ :
बहुत बार सुना करता हूँ, लोग कहते हैं "मन उखड़ा-उखड़ा-सा हो रहा है, मन कहीं लग नहीं रहा है, किसी बात में रस नहीं आ रहा है" इसका मतलब क्या है? कभी-कभी मन बेचैन हो जाता है, तो आप लोग इधर-उधर घूमने निकल जाते हैं—चलो, मन को कहीं बहलाएँ। मतलब इसका यह हुआ कि मन कहीं लग नहीं रहा है, इसलिए आपको बेचैनी है, परेशानी है। इधर-उधर घूमकर कैसे भी समय बिताना चाहते हैं।
एक सज्जन हैं, जिन्हें कभी-कभी रात को नींद नहीं आती है, तो बड़े परेशान होते हैं, खाट पर पड़े-पड़े करवटें बदलते रहते हैं, कभी बैठते हैं, कभी घूमते हैं, कभी लाइट जलाते हैं, कभी अन्धेरा करते हैं। यह सब परेशानी इसलिए है कि नींद नहीं आती है, और नींद इसलिए नहीं आती कि मन अशान्त है, उद्विग्न है। जिस मन को शान्ति नहीं मिलती, वह ऐसे ही करवटें बदलता रहता है, इधर-उधर भटकताफिरता है। परेशान और बेचैन दिखाई देता है। ये सब बिखरे मन की समस्याएँ हैं, मन की गाँठे हैं, जिन्हें खोले बिना, सुलझाए बिना चैन नहीं पड़ सकता। काम में रस पैदा कीजिए :
प्रश्न यह है कि मन की गाँठे कैसे खोलें ? मन को नींद कैसे दिलाएँ ? बिखरे हुए मन को शान्ति कैसे मिले ? इसके लिए एक बड़ा सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत है :
वैदिक-परम्परा में वाचस्पति मिश्र का बहुत ऊँचा स्थान है। वेदान्त के तो वह महान् आचार्य हो गए हैं, यों सभी विषयों में उनकी लेखनी चली है, वे सर्वतन्त्र स्वतन्त्र थे, उनकी कुछ मौलिक स्थापनाओं को आज भी चुनौती नहीं दी जा सकती
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