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३१८ चिंतन की मनोभूमि
उपर्युक्त उदाहरणों से यही प्रतिभासित होता है कि इस्लाम धर्म भी अपने साथ अहिंसा की दृष्टि को लेकर चला है। बाद में उसमें जो हिंसा का स्वर गूँजने लगा, उनका प्रमुख कारण स्वार्थी व रसलोलुप व्यक्ति ही हैं। उन्होंने हिंसा का समावेश करके इस्लामधर्म को बदनाम कर दिया है, वरना उसके धर्म ग्रन्थों में हिंसा करने का कोई प्रमाण ही नहीं मिलेगा ।
ईसाई धर्म में अहिंसा भावना :
महात्मा ईसा ने कहा है कि- " तू अपनी तलवार म्यान में रख ले, क्योंकि जो लोग तलवार चलाते हैं, वे सब तलवार से ही नाश किए जायेंगे ।" अन्यत्र भी बतलाया है – “किसी भी जीव की हिंसा मत करो। तुमसे कहा गया था कि तुम अपने पड़ोसी से प्रेम करो और अपने दुश्मन से घृणा । पर मैं तुमसे कहता हूँ कि तुम अपने दुश्मन को प्यार करो और जो लोग तुम्हें सताते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो । तभी तुम स्वर्ग में रहने वाले अपने पिता की संतान ठहरोगे, क्योंकि वह भले और बुरे दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है । धर्मियों और अंधर्मियों दोनों पर मेह बरसाता है। यदि तुम उन्हीं से प्रेम करो, जो तुम से प्रेम करते हैं, तो तुमने कौन मार्के की बात की। ? "२ इतना ही नहीं, वरन् अहिंसा का वह पैगाम तो काफी गहरी उड़ान भर बैठा है-- अपने शत्रु से प्रेम रखो जो तुमसे वैर करें, उनका भी भला सोचो और करो। जो तुम्हें शाप दें, उन्हें आशीर्वाद दो । जो तुम्हारा अपमान करें, उनके लिए प्रार्थना करो। जो तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी तरफ दूसरा भी गाल कर ... दो ! जो तुम्हारी चादर छीन ले, उसे अपना कुरता भी ले लेने दो । ३
ईसाई धर्म में भी प्रेम, करुणा और सेवा की अत्यन्त सुन्दर भावना व्यक्त की गई है। यह बात दूसरी है कि स्वार्थी और अहंवादी व्यक्तियों ने धर्म के नाम पर लाखों-करोड़ों यहूदियों का खून बहाया, धर्मयुद्ध रचाए और करुणा की जगह तलवार तथा प्रेम की जगह दंभ का प्रचार करने लगे ।
यहूदी धर्म में अहिंसा भावना :
यहूदी मत में कहा गया है कि- किसी आदमी के आत्म-सम्मान को चोट नहीं पहुँचानी चाहिए। लोगों के सामने किसी आदमी को अपमानित करना उतना ही बड़ा पाप है, जितना उसका खून कर देना । ४
यदि तुम्हारा शत्रु तुम्हें मारने को आए और वह भूखा-प्यासा तुम्हारे घर पहुँचे, तो उसे खाना दो, पानी दो । ५
१. मत्ती । २. मत्ति
३. लूका
४.
ता. बाबा मेतलिया
८ नीति २७।२१ परमिदारास
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