________________
जैन संस्कृति की अमर देन : अहिंसा |३१९/ यदि कोई आदमी संकट में है, डूब रहा है, उस पर दस्यु-डाकू या हिंसक शेर-चीते आदि हमला कर रहे हैं, तो हमारा कर्त्तव्य है कि हम उसकी रक्षा करें। प्राणिमात्र के प्रति निर्वैरभाव रखने की प्रेरणा प्रदान करते हुए यह बतलाया गया है कि अपने मन में किसी के प्रति वैर का, दुश्मनी का दुर्भाव मत रखो।
इस प्रकार यहूदी-धर्म के प्रवर्तकों की दृष्टि भी अहिंसा पर ही आधारित प्रतीत होती है। पारसी और ताओ धर्म में अहिंसा भावना :
पारसी धर्म के महान् प्रवर्तक महात्मा जरथुस्ट ने कहा है कि-"जो सबसे अच्छे प्रकार की जिन्दगी गुजारने से लोगों को रोकते हैं, अटकाते हैं और पशुओं को मारने की खुश-खुशाल सिफारिश करते हैं, उनको. अहुरमज्द बुरा समझते हैं ।२ अतः अपने मन में किसी से बदला लेने की भावना मत रखो। सोचो कि तुम अपने दुश्मन से बदला लोगे तो तुम्हें किस प्रकार की हानि, किस प्रकार की चोट और किस प्रकार का सर्वनाश भुगतना पड़ सकता है, और किस प्रकार बदले की भावना तुम्हें लगातार सताती रहेगी। अतः दुश्मन से भी बदला मत लो। बदले की भावना से अभिप्रेरित होकर कभी कोई पापकर्म मत करो। मन में सदा-सर्वदा सुन्दर विचारों के दीपक सँजोए रखो।
ताओ धर्म के महान् प्रणेता-'लाओत्से' ने अहिंसात्मक विचारों को अभिव्यक्त करते हुए कहा है कि जो लोग मेरे प्रति. अच्छा व्यवहार करते हैं, उनके प्रति मैं अच्छा व्यवहार करता हूँ। जो लोग मेरे प्रति अच्छा व्यवहार नहीं करते, उनके प्रति भी मैं अच्छा व्यवहार करता हूँ।३
कनफ्यूशस धर्म के प्रवर्तक कांगफ्यूत्सी ने कहा है कि "तुम्हें जो चीज नापसन्द है, वह दूसरे के लिए हर्गिज मत करो।" ।
इस प्रकार विविध धर्मों में अहिंसा को उच्च स्थान दिया गया है। वस्तुतः अहिंसा और दया की भावना से शून्य होकर कोई भी धर्म की संज्ञा पाने का अधिकारी नहीं हो सकता।
१. तोरा-लैव्य व्यवस्था २. गाथा ३. लाओ तेह किंग।
-१९।१७ -हा.३४,३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org