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________________ जैन संस्कृति की अमर देन : अहिंसा |३१७/ करो' इस नश्वर जीवन में न तो किसी प्राणी की हिंसा करो और न किसी को पीड़ा पहुँचाओ। बल्कि सभी आत्माओं के प्रति मैत्री-भावना स्थापित कर विचरण करते रहो। किसी के साथ वैर न करो। जैसे मानव को अपने प्राण प्यारे हैं, उसी प्रकार सभी प्राणियों को अपने-अपने प्राण प्यारे हैं। इसलिए बुद्धिमान् और पुण्यशाली जो लोग हैं, उन्हें चाहिए कि वे सभी प्राणियों को अपने समान समझें।३। इस विश्व में अपने प्राणों से प्यारी दूसरी कोई वस्तु प्रिय नहीं हैं। इसलिए मानव जैसे अपने ऊपर दया-भाव चाहता है, उसी प्रकार दूसरों पर भी दया करे। दयालु आत्मा ही सभी प्राणियों को अभयदान देता है, उसे भी सभी अभयदान देते हैं। अहिंसा ही एकमात्र पूर्ण धर्म है। हिंसा, धर्म और तप का नाश करने वाली है। अत: यह स्पष्ट है कि वैदिक धर्म भी अहिंसा की महत्ता को एक स्वर से स्वीकार करता है। इस्लाम धर्म में अहिंसा भावना : इस्लाम धर्म की अट्टालिका भी अहिंसा की नींव पर ही टिकी हुई है। इस्लाम-धर्म में कहा जाता है "खदा सारे जगत् (खल्क) का पिता (खालिक) है। जगत् में जितने प्राणी हैं, वे सभी खुदा के पुत्र (बन्दे) हैं।" कुरान शरीफ की शुरूआत में ही अल्लाहताला 'खुदा' का विशेषण दिया है—“बिस्मिल्लाह रहिमानुर्रहीम"इस प्रकार का मंगलाचरण देकर यह बताया गया है कि सब जीवों पर रहम करो।। मुहम्मद साहब के उत्तराधिकारी हजरत अली साहब ने कहा है "हे मानव! तू पशु-पक्षियों की कब्र अपने पेट में मत बना" अर्थात् पशु-पक्षियों को मार कर उनको अपना भोजन मत बनाओ। इसी प्रकार 'दीनइलाही' के प्रवर्तक मुगल सम्राट अकबर ने कहा है "मैं अपने पेट को दूसरे जीवों का कब्रिस्तान बनाना नहीं चाहता। जिसने किसी की जान बचाई-उसने मानो सारे इन्सानों को जिन्दगी बख्शी ।" --मनुस्मृति —महाभारत-शान्ति पर्व, २७८।५ -महाभारत—अनुशासन पर्व; ११५ । १९ १. आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। २. न हिंस्यात् सर्वभूतानि, मैत्रायणगतश्चरेत्। नेदं जीवितमासाद्य वैरं कुर्वीत् केनचित्॥ ३. प्राणा यथात्मनोऽभीष्टाः भूतानामपि वै तथा। आत्मौपम्येन गन्तव्यं बुद्धिमद्भिर्महात्मभिः॥ ४. नहि प्राणात् प्रियतर लोके किञ्चन विद्यते। तस्माद् दयां नरः कुर्यात् यथात्मनि तथा परे। ५. अभयं सर्वभूतेव्यो यो ददाति दयापरः। अभयं तस्य भूतानि ददतीत्य नुशुश्रुमः॥ ६. अहिंसा सकलो धर्मः । ७. व मन् अहया हा फकअन्नमा अह्मत्रास जमीअनः। महाभारत–अनुशासन पर्व, ११६।८ -महाभारत-अनुशासन पर्व; ११६ । १३ -महाभारत, शान्ति पर्व -कुरान शरीफ५।३५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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