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________________ जैन संस्कृति की अमर देन : अहिंसा ३१३ भगवान् महावीर का यह महान् ज्योतिर्मय सन्देश आज भी हमारी आँखों के सामने है, इसका सूक्ष्म बीज उत्तराध्ययन-सूत्र' की सर्वार्थ-सिद्धि-वृत्ति में आज भी हम देख सकते हैं। वर्तमान परिस्थिति और अहिंसा : अहिंसा के महान् सन्देशवाहक भगवान् महावीर थे। आज वे ढाई हजार वर्ष पहले का समय, भारतीय संस्कृति के इतिहास में, एक प्रगाढ़ अन्धकारपूर्ण युग माना जाता है। देवी-देवताओं के आगे पशु-बलि के नाम पर रक्त की नदियाँ बहाई जाती थीं, माँसाहार और सुरापान का दौर चलता था। अस्पृश्यता के नाम पर करोड़ों की संख्या में मनुष्य अत्याचार की चक्की में पिस रहे थे। स्त्रियों को भी मनुष्योचित अधिकारों से वंचित कर दिया गया था। एक क्या, अनेक रूपों में हिंसा की प्रचण्ड ज्वालाएँ धधक रही थीं, समूची मानव जाति उससे संत्रस्त हो रही थी। उस समय में भगवान् महावीर ने संसार को अहिंसा का अमृतमय सन्देश दिया। हिंसा का विषाक्त प्रभाव धीरे-धीरे शान्त हुआ और मनुष्य के हृदय में मनुष्य क्या, पशुओं के प्रति भी दया, प्रेम और करुणा की अमृत-गंगा बह उठी। संसार में स्नेह, सद्भाव और मानवोचित अधिकारों का विस्तार हुआ। संसार की मातृ-जाति नारी को फिर से योग्य सम्मान मिला। शूद्रों को भी मानवीय ढंग से जीने का अधिकार प्राप्त हुआ और निरीहपशु ने भी मनुष्य के क्रूर-हाथों से अभय-दान पाकर जीवन का अमोघ वरदान पा लिया। अहिंसा एवं विभिन्न मत ___अहिंसा की परिधि के अन्तर्गत समस्त धर्म और समस्त दर्शन समवेत हो जाते हैं, यही कारण है कि प्रायः सभी धर्मों ने इसे एक स्वर से स्वीकार किया है। हमारे यहाँ के चिन्तन में, समस्त धर्म-सम्प्रदायों में अहिंसा के सम्बन्ध में, उसकी महत्ता और उपयोगिता के सम्बन्ध में दो मत नहीं हैं, भले ही उसकी सीमाएँ कुछ भिन्नभिन्न हों। कोई भी धर्म यह कहने के लिए तैयार नहीं कि झूठ बोलने में धर्म है, चोरी करने में धर्म है या अब्रह्मचर्य सेवन करने में धर्म है। जब इन्हें धर्म नहीं कहा जा सकता, तो हिंसा को कैसे धर्म कहा जा सकता है ? हिंसा को हिंसा के नाम से कोई स्वीकार नहीं करता। अत: किसी भी धर्मशास्त्र में हिंसा को धर्म और अहिंसा को अधर्म नहीं कहा गया है। सभी धर्मों ने अहिंसा को ही परम धर्म स्वीकार किया जैन-धर्म में अहिंसा भावना : आज से पच्चीस सौ वर्ष पूर्व भगवान् महावीर ने अहिंसा की नीव को सुदृढ़ बनाने के लिए, हिंसा के प्रति क्रांति की। अहिंसा और धर्म के नाम पर हिंसा का जो नग्न नृत्य हो रहा था, जनमानस भ्रान्त किया जा रहा था, वह भगवान् महावीर से देखा नहीं गया। उन्होंने हिंसा पर लगे धर्म और अहिंसा के मुखौटों को उतार फेंका, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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