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" आप्तोपज्ञमनुल्लंघ्यमदृष्टेष्टविरोधकम् । तत्वोपदेशकृत्सार्वं शास्त्रं कापथघट्टनम् ॥' "१
" जो वीतराग - आप्त पुरुषों के द्वारा जाना परखा गया है, जो किसी अन्य वचन के द्वारा अपदस्थ - हीन नहीं किया जा सकता और जो तर्क तथा प्रमाणों से खण्डित नहीं हो सकने वाले सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है, जो प्राणिमात्र के कल्याण के निमित्त से सार्व अर्थात् सार्वजनीन सर्वजन हितकारी होता है एवं आध्यात्म साधना के विरुद्ध जाने वाली विचार सारणियों का निरोध करता है - वही सच्चा शास्त्र है।"
तार्किक आचार्य ने शास्त्र की जो कसौटी की है, वह आज भी अमान्य नहीं की जा सकती। वैदिक परम्परा के प्रथम दार्शनिक कपिल एवं महान् तार्किक गौतम ने भी जब शब्द को प्रमाण कोटि में माना, तो पूछा गया - शब्द प्रमाण क्या है ? तो कहा'आप्त का उपदेश शब्द प्रमाण है।' आप्त कौन है ? तत्त्व का यथार्थ उपदेष्टा आप्त है। जिसके वचन में पूर्वापर विरोध, असंगति-विसंगति नहीं होती, और जो वचन प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों के विरुद्ध नहीं जाता, खण्डित नहीं होता वही आप्त वचन है। आचार्य के उक्त कथन से यह सिद्ध हो जाता है कि किसका, क्या वचन मान्य हो सकता है और क्या नहीं। जो वचन यथार्थ नहीं है, सत्य की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है, वह भले कितना ही विराट् एवं विशाल ग्रन्थ क्यों न हो, उसे 'आप्तवचन' कहने से इन्कार कर दीजिए। इसी में आप्त की और आप की प्रामाणिकता है, प्रतिष्ठा है । हम स्वयं निर्णय करें :
धर्म की कसौटी : शास्त्र | ३०५
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तर्कशास्त्र की ये सूक्ष्म बातें मैंने आपको इसलिए बताई हैं कि हम अपनी प्रज्ञा को जाग्रत करें और स्वयं परखें कि वस्तुतः शास्त्र क्या है, उसका प्रयोजन क्या है ? और फिर यह भी निर्णय करें कि जो अपनी परिभाषा एवं प्रयोजन के अनुकूल नहीं है, वह शास्त्र, शास्त्र नहीं है । उसे और कुछ भी कह सकते हैं-ग्रन्थ, रचना, कृति कुछ भी कहिए, पर हर किसी ग्रन्थ को भगवद्वाणी या आप्तवचन नहीं कह सकते। शास्त्र की एक कसौटी, जो उत्तराध्ययन सूत्र से मैंने आपको बतलाई है, जिसमें कहा गया है - तप, क्षमा एवं अहिंसा की प्रेरणा जगाकर आत्मदृष्टि को जाग्रत करनें वाला • शास्त्र है। यह इतनी श्रेष्ठ और सही कसौटी है कि इसके आधार पर भी यदि हम वर्तमान में शास्त्रों का निर्णय करें, तो बहुत ही सही दिशा प्राप्त कर सकते हैं।
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न्यायावतार, ९
२. अप्तोपदेशः शब्दः - सांख्यदर्शन १ । १०१
. - न्यायदर्शन १ । १।७ आप्तः खलु साक्षात्कृतधर्मा यथादृष्टस्यार्थस्य चिख्यापययिषा प्रयुक्त उपदेष्टा
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-न्यायदर्शन वात्स्यायन भाष्य
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