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१२९६, चिंतन की मनोभूमि शास्त्र का लक्ष्य : श्रेयभावना :
शास्त्र की प्रेरकता में तप और क्षमा के साथ अहिंसा शब्द का भी उल्लेख किया गया है। अहिंसा की बात कह कर समग्र प्राणिजगत् के श्रेय एवं कल्याण की भावना का समावेश शास्त्र में कर दिया गया है। भगवान् महावीर ने अहिंसा को 'भगवती' कहा है। १ महान् श्रुतधर आचार्य समन्तभद्र ने अहिंसा को परब्रह्म कहा है। इसका मतलब है-अहिंसा एक विराट् आध्यात्मिक चेतना है, समग्र प्राणिजगत के शिवं एवं कल्याण का प्रतीक है। इसीलिए मैंने 'सत्यं' के साथ 'शिवं' की मर्यादा का उल्लेख किया है। अहिंसा हमारे 'शिवं' की साधना है। करुणा, कोमलता, सेवा, सहयोग, मैत्री और अभय ये सब अहिंसा की फलश्रुतियाँ हैं। इस प्रकार हम शास्त्र की परिभाषा इस प्रकार कर सकते हैं कि तप, क्षमा एवं अहिंसा के द्वारा जीवन को साधने वाला, अन्तरात्मा को परिष्कृत करने वाला जो तत्त्वज्ञान है, वह शास्त्र है। शास्त्र का प्रयोजन :
शास्त्र की परिभाषा समझ लेने पर इसका प्रयोजन क्या है ? यह भी स्पष्ट हो जाता है। भगवान् शास्त्र का प्रवचन किसलिए करते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए महावीर के प्रथम उत्तराधिकारी आर्य सुधर्मा ने कहा है—'सव्व-जग-जीवरक्खण दयट्ठयाए भगवया पावयणं सुकहियं'३ समस्त प्राणिजगत् की सुरक्षा एवं दया भावना से प्ररित होकर उसके कल्याण के लिए भगवान् ने उपदेश दिया।
___ परिभाषा और प्रयोजन कहीं भिन्न-भिन्न होते हैं और कहीं एक भी । यहाँ परिभाषा में प्रयोजन स्वतः निहित है। यों शास्त्र की परिभाषा में ही शास्त्र का प्रयोजन स्पष्ट हो गया है, और अलग प्रयोजन बतला कर भी यह स्पष्ट कर दिया गया है कि शास्त्र का शुद्ध प्रयोजन विश्व के कल्याण का मार्ग प्रशस्त करना है। शास्त्र के इस प्रयोजन को जैन भी मानते हैं, बौद्ध और वैदिक भी मानते हैं, ईसाई और मुसलमान भी यही बात कहते हैं कि ईसा और मुहम्मद साहब दुनिया की भलाई के लिए प्रेम और मुहब्बत का पैगाम लेकर आए।
___ मैं समझता हूँ शास्त्र का यह एक ऐसा व्यापक और विराट् उद्देश्य है, जिसे कोई भी तत्त्वचिन्तक चुनौती नहीं दे सकता।
जैन श्रुतपरम्परा के महान् ज्योतिर्धर आचार्य हरिभद्र के समक्ष जब शास्त्र के प्रयोजन का प्रश्न आया, तो उन्होंने भी इसी बात को दुहराते हुए उत्तर दिया
१. प्रश्नव्याकरण, २११ २. अहिंसा भूतानां जगति विदितं ब्रह्म परमम्।
३. प्रश्नव्याकरण.२११-७ Jain Education International
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-स्वयंभू स्तोत्र
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