________________
-
१२८८ चिंतन की मनोभूमि संशय : जीवन का खतरनाक बिन्दु :
तैत्तिरीय ब्राह्मण का स्वाध्याय करते समय एक सूक्त आया था. "श्रद्धा प्रतिष्ठा लोकस्य देवी" श्रद्धा देवी ही विश्व की प्रतिष्ठा है, आधार शिला है। यदि यह आधार हिल गया, तो समूचा विश्व डगमगा जाएगा। भूचाल आते हैं, तो हमारे पुराने पंडित लोग कहते हैं, शेष नाग ने सिर हिलाया है। मैं सोचता हूँ साधक जीवन में जब-जब भी उथल-पुथल होती है, गड़बड़ मचती है, तब अवश्य ही श्रद्धा का शेषनाग अपना सिर हिलाता है। अवश्य ही कहीं वह स्खलित हुई होगी, उसका कोई आधार शिथिल हुआ होगा।
पति-पत्नी का, पिता-पुत्र का सबसे निकटतम सूत्र भी विश्वास के धागों से जुड़ा हुआ है, और राष्ट्र-राष्ट्र का विराट् सम्बन्ध भी इसी विश्वास के सूत्र से बँधा हुआ है। मैं पूछता हूँ, पति-पत्नी कब तक पति-पत्नी हैं ? जब तक उनके बीच स्नेह एवं विश्वास का सूत्र जुड़ा हुआ है। यदि पति-पत्नी के बीच संशय आ जाता है, मन में अविश्वास जग जाता है, तो वे एक दिन एक-दूसरे की जान के ग्राहक बन जाते हैं। वे जीते जी भले ही साथ रहते हैं, परन्तु ऐसे कि एक ही जेल की कोठरी में दो दुश्मन साथ-साथ रह रहे हों। घर, परिवार, समाज और राष्ट्र के हरे-भरे उपवन वीरान हो जाते हैं, बर्बाद हो जाते हैं, संशय एवं अविश्वास के कारण। विश्व में और खासकर भारत में जो संकट छाया है, वह विश्वास का संकट है, श्रद्धा का संकट है। आज किसका भरोसा है कि कौन किस घड़ी में बदल जाएगा ? समर्थक विरोधी बन जाएँगे, इकरार इन्कार में बदल जाएँगे? अविश्वास के वातावरण से समूचा राष्ट्र दिशाहीन गति-हीन हुआ जा रहा है। जीवन अस्त-व्यस्त-सा बिखर रहा है। मैं आपसे कहता हूँ—यह निश्चय समझ लीजिए, जब तक मन से अविश्वास एवं संशय का भाव समाप्त नहीं होगा, तब तक राष्ट्र प्रगति नहीं कर सकेगा, भुखमरी और दरिद्रता से मुक्ति नहीं पा सकेगा। अमेरिका और रूस की सहायता पर आप अधिक दिन नहीं जी सकते। आपके जीने का अपना आधार होना चाहिए। सोने के लिए पड़ोसी की छत मत ताकिए; आखिर अपनी छत ही आपके सोने के काम में आ सकती है। अपना बल ही आपके चलने में सहयोगी होगा और, वह बल कहीं और से नहीं, आपके ही हृदय के विश्वास से, निष्ठा से प्राप्त होगा।
हमारा जीवन कीड़े-मकोड़ों की तरह अविश्वास की भूमि पर रेंगने के लिए नहीं है। आस्था के अनन्त गगन में गरुड़ की भाँति उड़ान भरने के लिए है। हम भविष्य के स्वप्न देखने के लिए हैं, सिर्फ देखने के लिए ही नहीं, स्वप्नों को साकार करने के लिए हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org