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________________ | २८६ चिंतन की मनोभूमि आखिर इन्द्रजीत के नागपाश में बंध गए। जब रावण की सभा में लाए गए तो रावण ने व्यंग्य किया। "हनुमान। तुम हमारे पीढ़ियों के गुलाम होकर भी आज हमसे ही लड़ने आए हो। यदि तुम दूत बनकर नहीं आए होते तो तुम्हारा वध कर दिया जाता। किन्तु दूत अवध्य होता है। अतः अब तुम्हें हाथ मुंह काला करके नगर से बाहर निकाला जाएगा।" हनुमान ने जब यह सुना तो उसका आत्म-तेज हुँकार कर उठा। उसने सोचायह अपमान हनुमान का नहीं, राम का है, मैं तो उन्हीं का दूत हूँ। शरीर मेरा है, आत्मा तो राम की है। भक्त में हमेशा ही भगवान् की आत्मा बोला करती है, तो मैं अपने भगवान् का यह अपमान नहीं सह सकूँगा। बस उनमें आत्मा की वह शक्ति जगी कि एक झटके में ही वह नागपाश को तोड़कर उन्मुक्त हो गए। हनुमान जब तक नागपाश की शक्ति को अपनी शक्ति से बढ़कर मानते रहे, तब तक नागपाश में बँधे रहे और जब हनुमान को नागपाश की शक्ति से बढ़कर अपनी शक्ति का भान हुआ, तो नागपाश को टूटते कुछ भी समय नहीं लगा। यह स्थिति केवल रामायण के हनुमान की नहीं है, किन्तु प्रत्येक मनुष्य और प्रत्येक प्राणी की है। जब तक उसे अपनी शक्ति का ज्ञान नहीं है, वह दुर्बलता के हाथ का खिलौना बना रहता है, किन्तु जब आत्म-शक्ति का विश्वास हो जाता है, अपने अनन्त शौर्य का भान होता है, तब प्राणी किसी के अधीन नहीं रहता। मनुष्य को अपनी दीन-हीन स्थिति पर निराश न होकर, अपनी आत्म-शक्ति को जगाने का प्रयत्न करना चाहिए। जितने भी महापुरुष संसार में हुए हैं, उन सबने अपनी आत्मशक्ति को जगाया है और इसी के सहारे वे विकास की चरम कोटि पर पहुंचे हैं। उन सबका यही संदेश है कि अपनी आत्म-शक्ति को जगाओ। आत्म-जागरण ही तुम्हारे विकास का सोपान है। संकल्प बल : भारतीय दर्शन का एक मात्र स्वर रहा है-क्या थे, इसकी चिन्ता छोड़ो, क्या हैं, इसकी भी. चिन्ता न करो, लेकिन यह सोचो कि क्या बनना है, उसका नक्शा बनाओ, रेखाचित्र तैयार करो, अपने भविष्य का संकल्प करो। जो भवन बनाना है उसका नक्शा बनाओ, रेखाचित्र तैयार करो और पूरी शक्ति के साथ जुट जाओ, उसे साकार बनाने में। संकल्प कच्चा धागा नहीं है, जो एक झटका लगा कि टूट जाए। वह लौहश्रृंखला से भी अधिक दृढ़ होता है। झटके लगते जाएँ, तूफान आते जाएँ, पर संकल्प का सूत्र कभी टूटने न पाए। दिन पर दिन बीतते चले जाते हैं, वर्ष पर वर्ष गुजरते जाते हैं, और तो क्या, जन्म के जन्म बीतते जाते हैं, फिर भी साधक स्वीकृत पथ पर चलता जाता है, अटूट श्रद्धा एवं संकल्प का तेज लिए हुए। चलने वाले को यह चिन्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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