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________________ आत्म जागरण २८५ सदा सतयुग रहता है। संसार में यदि कोई कहीं डेरा जमाना भी चाहे तो महाकाल किसी को कहाँ जमने देता है ? तो फिर कहीं उलझने की चेष्टा क्यों की जाए। जीवन में सुख के फूलों और दुःख के काँटों में उलझने की जरूरत नहीं है, इन सबसे निरपेक्ष होकर आत्म-शक्ति को जागृत किए चलना है। आत्म-शक्ति का जागरण तब होगा, जब अपने प्रति अपना विश्वास जगेगा। आत्मा के अन्तराल में छिपी अनन्त शक्तियों के प्रति निष्ठा पैदा होने से ही आत्म-शक्ति का जागरण होता है । सूत्रों में ऐसा वर्णन आता है, कि आत्मा के एक-एक प्रदेश पर कर्मों की अनन्तानन्त वर्गणाएँ छाई हुई हैं। अब देखिए कि आत्मा के असंख्य प्रदेश हैं, और प्रत्येक प्रदेश पर अनन्तानन्त कर्म वर्गणाएँ चिपकी बैठी हैं। मनुष्य अवश्य ही घबरा जाएगा कि किस प्रकार मैं कर्मों की अनन्त सेना से लड़ सकूँगा ? और कैसे ये बन्धन तोड़ कर मुक्त बन सकूँगा ? किन्तु जब वह अपनी आत्मशक्ति पर विचार करेगा, तो अवश्य ही उसका साहस बढ़ जाएगा। जैन दर्शन ने बताया है कि जिस प्रकार एक पक्षी पंखों पर लगे धूल को पंख फड़फड़ा कर एक झटके में दूर कर देता है, उसी प्रकार साधक जीव भी अनन्तानन्त कर्म बन्धनों को, एक झटके में तोड़ सकता है । पलक मारते ही, जैसे पक्षी के परों की धूल उड़ जाती है, त्यों ही आत्म-विश्वास जागृत होते ही, कर्म-वर्गणा की जमी हुई अनन्त तहें एक साथ ही साफ हो जाती हैं। आज के वैज्ञानिक युग में तो इस प्रकार का संदेह ही नहीं करना चाहिए कि कुछ ही क्षणों में किस प्रकार अनन्त कर्म बन्धन छूट सकते हैं, जबकि विज्ञान के क्षेत्र में पलक मारते ही संसार की परिक्रमा करने वाले राकेट, और क्षण भर में विश्व को भस्मसात करने वाले बम का आविष्कार हो चुका है। यांत्रिक वस्तुओं की क्षमता तो सीमित है, परन्तु आत्मा की शक्ति अनन्त है, उसकी शक्ति की कोई सीमा नहीं है । मनः पर्यव ज्ञान और अवधि ज्ञान में यह शक्ति है कि वह एक मिनट के असंख्यातवें भाग में भी सुदूर विश्व का ज्ञान कर लेता है। हाथ की रेखाओं की तरह संसार की भौतिक हलचलें, उनके सामने स्पष्ट रहती हैं। केवल ज्ञान की शक्ति तो उससे भी अनन्तगुनी है, उसका कोई पार ही नहीं है। आत्मविश्वास का चमत्कार : जिस जीवन यात्री का, अपने पर भरोसा होता है, आत्मशक्तियों पर विश्वास होता है, वह कहीं बाहर में नहीं भटकता। वह अपनी गरीबी का रोना कहीं नहीं रोता । उसके अन्दर और बाहर में सर्वत्र आत्म-विश्वास की रोशनी चमकने लग जाती है। जितने भी शास्त्र हैं, गुरु हैं, सब शिष्य के सोए हुए आत्म-विश्वास को जगाने का प्रयत्न करते हैं। रामायण में एक वर्णन आता है कि जब हनुमान राम के दूत बनकर लंका में पहुँचे, तो राक्षसों के किसी भी अस्त्र-शस्त्र से पराजित नहीं हुए। किन्तु www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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