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योग और क्षेम २६५ तरह, बस उसे खेल की ही वस्तु समझ बैठे और आखिर खेल-खेल में ही उसे गवाँ भी दिया। इसलिए योग से क्षेम महान् है। सुयोग से उपयोग प्रधान है।
भारत की वैष्णव-परम्परा के सन्त अपने भक्त से कहते हैं कि त भगवान से धन की कामना मत कर, यहाँ तक कि अपनी आयु की कामना भी मत कर, किन्तु जीवन के सदुपयोग की कामना अवश्य कर। किन्तु जैन शास्त्रों में तो यहाँ तक कहा गया है कि जीवन-मरण की कामना भी न करो.
'जीवियं नाभि कंखेज्जा, मरणं नाभिपत्थए।' जीवन केवल जीने के लिए ही नहीं है, जीवन सदुपयोग के लिए है ' अतः जीवन के सदुपयोग की कामना करो। इस प्राप्त शरीर से तुम संसार का कितना भला कर सकते हो, यह देखो। भारतवर्ष के आचार्यों का दर्शन बताता है कि तुम कभी अपने सुख की माँग मत करो, धन-वैभव की याचना मत करो, किन्तु विश्व की भलाई की कामना अवश्य करो। यदि संयोग से धन प्राप्त हो जाता है, तो उसके सदुपयोग की बुद्धि आए, यही कामना करो।
संस्कृत साहित्य में भगवान् से प्रार्थना के रूप में कही गई एक पुरानी सूक्ति
"नत्वहं कामये राज्यं, न स्वर्ग न पुनर्भवम्।
कामये दुःख तप्तानां, प्राणिनामर्तनाशनम्॥" भक्त कहता है—हे प्रभो। न मुझे राज्य चाहिए, न स्वर्ग और न अमरत्व ही चाहिए। किन्तु दुःखी प्राणियों की पीड़ा मिटा सकूँ, ऐसी शक्ति चाहिए। एक ओर आप पेट भर खाने के बाद भी आधी जूठन छोड़ कर उठते हैं, और दूसरी ओर एक इन्सान जूठी पत्तलें. चाट कर भी पेट नहीं भर पाता है. यह विषमता जब तक मिट नहीं जाती, तब तक योग और क्षेम की साधना कहाँ हो सकती है ? भूखा आदमी हर कोई पाप कर सकता है, पंचतंत्रकार ने कहा है...
"बुभुक्षितः किं न करोति पापम् ?" भूखा आदमी कौन-सा पाप नहीं कर सकता है ? भखा आदमी जैसे भी हो, क्रांति की बात करता है, अपने विद्रोह की ज्वाला से वह समाज की इन विषमपरम्पराओं को जला कर भस्म कर डालना चाहता है। अतः जिनके पास धन है, रोटी है, वे अपने योग का सही उपयोग करना सीखें, योग से क्षेम की ओर बढ़ने की चेष्टा .. करें।
मान लीजिए, किसी के पास लाख रुपये हैं और वह अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उसका उपयोग करता है, अपनी वासना और अहंकार की आग में उसको झोंक देता है। तो इस प्रकार धन तो खर्च होगा, उसका उपयोग भी होगा, लेकिन वह उपयोग सदुपयोग नहीं है। उस स्थित में बाह्य दृष्टि से धन के प्रति
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