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२६४ चिंतन की मनोभूमि था, किन्तु बहुमूल्य हीरे का सुयोग तो जीवन में एक बार ही मिला! कुछ व्यक्ति जो मुयोग को ही महत्त्व देते हैं, उसे ही सब कुछ मान बैठते हैं, जीवन में कोई ख्याति या धन कमाने का कोई चान्स—संयोग मिल गया, तो बस उसे ही जीवन का श्रेष्ठतम मयोग मान लेते हैं। साधारण मनुष्य की दृष्टि बाह्य वस्तुओं पर ही अधिक घूमती है, अतः बाह्य रूप को ही वह अधिक महत्त्व देता है और तो क्या, तीर्थङ्करों के वर्णन में भी स्वर्ण सिंहासन, रत्न मणिजटित छत्र और चामर आदि की चकाचौंध वाली उनकी बाह्य विभूतियों का ही प्रदर्शन करने की चेष्टा की जाती है। संसार के सभी मानदण्डों का आधार ही आज बाह्य वस्तु, बाह्य शक्ति बन रही है।
इस प्रकार, साधारण दृष्टि में किसी अच्छी वस्तु का प्राप्तिरूप योग का महत्त्व बहुत माना जाता है, किन्तु यदि योग के साथ क्षेम नहीं हुआ है, तो कोरे योग से क्या लाभ? क्षेम का अर्थ :
योग के साथ क्षेम का होना आवश्यक है। क्षेम का अर्थ इस प्रकार किया गया
"प्राप्तस्य संरक्षणं क्षेमः ।' प्राप्त हुई वस्तु की रक्षा करना, उसका यथोचित उपयोग करना, क्षेम है। योग के साथ क्षेम उसी प्रकार आवश्यक है, जिस प्रकार कि जन्म के बाद बच्चे का पालनपोषण। संयोग से सुयोग श्रेष्ठ है, किन्तु सुयोग से भी बड़ा है क्षेम, अर्थात् उचित संरक्षण, उचित उपयोग। धन कमाना कोई बड़ी बात नहीं है, किन्तु उसकी रक्षा करना, उसका सदुपयोग करना बहुत ही कठिन कार्य है। इसीलिए वह अधिक महत्त्वपूर्ण भी है। चरवाहे को रत्न का योग या सुयोग तो मिला, किन्तु वह उसका क्षेम नहीं कर सका और, इसका यह परिणाम हुआ कि वह दरिद्र का दरिद्र ही रहा।
आपको मनुष्य जीवन का योग तो मिला गया। ऐसी दुर्लभ वस्तु मिली, जिसका सभी ने एक स्वर से महत्त्व स्वीकार किया है। देवता भी जिसकी इच्छा करते हैं, वह वस्तु आपको मिली। भगवान् महावीर ने तो इसको बहुत महत्त्वपूर्ण शब्द से सम्बोधित किया है। उनके चरणों में राजा या रंक, जब भी कोई मानव उपस्थित हुआ, तो उन्होंने उसे 'देवानुप्रिय' जैसे श्रेष्ठ सम्बोधन से पुकारा। देवानुप्रिय का अर्थ है-यह मानव-जीवन देवताओं को भी प्यारा है। ऐसे देव-दुर्लभ जीवन का योग मिलने पर भी यदि उसका क्षेम–सदुपयोग नहीं किया जा सका, तो क्या लाभ हुआ ? मनुष्य की महत्ता सिर्फ मनुष्य जन्म प्राप्त होने से ही नहीं होती, उसकी महत्ता है, इसके उपयोग पर। जो प्राप्त मानव जीवन का जितना अधिक सदुपयोग करता है, उसका जीवन उतना ही महत्त्वपूर्ण होता है। यह जीवन तो अनेक बार पहले भी मिल चुका है, किन्तु उसका सदुपयोग नहीं किया गया। उस चरवाहे की
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