________________
कल्याण का मार्ग २३५ आपके आदेश थे कि दोनों के चित्र, शैली और रंग एक समान ही होने चाहिए, और एक-दूसरे का चित्र कोई देख भी नहीं सके, तो इसीलिए उसने चित्र बनाए और मैंने इस दीवार को तैयार किया। छह महीने तक अथक परिश्रम करके इसे साफ किया, रगड़ा चमकाया और बिल्कुल शीशे की तरह उज्ज्वल और चमकदार बना दिया। इसमें वह शक्ति पैदा कर दी कि किसी भी वस्तु को यह अपने में प्रतिबिम्बित कर सकती है। परन्तु जब तक पर्दा बीच में था, तब तक तो कुछ भी नहीं मालूम होता था। पर्दा हट गया, तो सब कुछ इसमें झलक उठा, वे ही सब चित्र प्रतिबिम्बित हो गये। राजमार्ग :
कहने का अभिप्राय यह है कि आत्मा पर मोह एवं कपाय का एक सघन पर्दा पड़ा हुआ है, जब तक वह पर्दा नहीं हटता, 'जिनत्व' जागत नहीं हो सकता। आत्मस्वरूप वहाँ -झलक नहीं सकता। दीवार की सफाई और चमकाने की तरह आत्मा की सफाई भी जरूरी है। जब तक दीवार तैयार नहीं तब तक चित्र कैसे प्रतिबिम्बित हो सकेंगे। वह दीवार तैयार करना–साधना के द्वारा आत्मा की सफाई, स्वच्छता एवं निर्मलता पैदा करना है। साधना के द्वारा यदि आत्मा स्वच्छ एवं निर्मल हो गई, तो वहाँ 'जिनत्व' के प्रतिबिम्बित होने में कोई भी शंका नहीं है। आत्मा की विकासभूमि तैयार करने के लिए साधना आवश्यक है। अतः स्पष्ट है कि साधना का मार्ग राजमार्ग है। राजमार्ग पर ब्राह्मण को भी चलने का अधिकार है; हरिजन एवं अछूत को भी । वहाँ स्त्री भी चल सकती है और पुरुष भी। गोरा आदमी भी चल सकता है और काला भी। किसी के लिए वहाँ किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं, कोई रुकावट नहीं। इस मार्ग पर चलने वाले से किसी को यह पूछने का अधिकार नहीं कि तुम्हारी जाति क्या है ? तुम्हारा देश क्या है ? पंथ क्या है ? तुम्हारी परम्परा क्या है ? तुम धनी हो या निर्धन ? काले हो या गोरे ? हिन्दू हो या मुसलमान ? एक प्राचीन जैन मनीषी ने कहा है--
"अन्नोनदेशजाया, अन्नोन्नाहारबड्ढिय सरीरा।
जे जिणधम्मपक्ना, सव्वे ते बंधवा भणिया॥" अलग-अलग देशों में, अलग-अलग प्रान्तों और अलग-अलग भूमिकाओं में जन्म लेने वाले, खान, पान और रहन-सहन के विभिन्न प्रकारों में पलने वाले भी यदि 'जिन धर्म' अर्थात् वीताराग भाव को स्वीकार करते हैं, तो वे परस्पर भाई-भाई हैं। उनकी साधना की भूमिका में कोई विभेदक रेखा खड़ी नहीं खींची जा सकती! धर्म साधना के क्षेत्र में उनका भ्रातृत्व का, समत्व का दर्जा खण्डित नहीं हो सकता।
यह एक दृष्टिकोण है, जो साधना के क्षेत्र में चलने वालों के लिए अखण्ड प्रेम, स्नेह और सद्भाव का संदेश देता है। धर्म कोई जाति नहीं है, वंश-परम्परा नहीं है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org