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कल्याण का मार्ग | २३३ कहा है सच्चेणालीकवादिनं सत्य से असत्य को पराजित करो। हिंसा और वैर का प्रवाह हमारे मन में उमड़ रहा हो, तो उसे रोकने के लिए अहिंसा और निर्वैर (क्षमा) को चट्टानें खड़ी करनी पड़ेंगी। लोभ और वासनाओं का दावानल यदि भड़क रहा है, तो उसकी शान्ति के लिए सन्तोष रूपी जलवृष्टि की जरूरत है। यदि आपके
अन्तर में अभिमान जग रहा है, तो विनय धारण कीजिए, और यदि हीनता जन्म ले रही है, तो 'आत्म गौरव' का भाव भरिए। कषायों की जो अग्नि है, वह अकषाय के जल के बिना बुझेगी कैसे ? आगम में कहा है
"कसाया अग्गीणो वुत्ता सुय सील तवो जलं" श्री केशीकुमार श्रमण, गौतम स्वामी से पूछ रहे हैं कि एक भयंकर अग्नि संसार में धधक रही है, उसकी प्रचण्ड ज्वालाओं से संसार दग्ध हो रहा है, उस अग्नि को आप कैसे बुझा सकते हैं ? उसे बुझाने का उपाय क्या है ? तो गौतम कहते हैं कि मैं उस अग्नि को जल से बुझाता हूँ। केशीकुमार फिर पूछते हैं कि वह कौनसा जल है ? तो गौतम कहते हैं कि कषाय भयंकर अग्नि है, यह मनुष्य के अन्तर में प्रज्ज्वलित हो रही है, उसको शान्त करने के लिए ज्ञान, सदाचार और तप-श्रुत, शील
और संयम के जल की आवश्यकता है। हाँ, उस जल का निर्झर भी हमारे अन्तर में ही बह रहा है; कहीं बाहर खोजने की जरूरत नहीं है। स्पष्ट है कि साधना का जो भी मार्ग है, वह हमारे अन्दर से ही जाग्रत होगा। उस पर किसी जाति, रंग या सम्प्रदाय की कोई मोहर नहीं लगी है। किसी मत और किसी पन्थ का सिक्का उस पर नहीं है। साधना का आधार : आत्मा :
साधना आत्मा की वस्तु है, आत्मा को स्पर्श करके ही वह चलती है। वह एक मछली की तरह है, जो हमेशा आत्मा के सरोवर में तैरती रहती है। उसे यदि वहाँ से हटाकर भौतिक जगत् में रखने का प्रयत्न किया जाता है, तो वह छटपटा कर खत्म हो जाती है। बाह्य सतह पर वह जीवित नहीं रह सकती।
__ आप जानते हैं, जैन धर्म का क्या अर्थ है ? जैन धर्म का अर्थ है-जिन का धर्म! जिन कौन हैं ? क्या 'जिन' नाम का कोई खास महापुरुष राजा, चक्रवर्ती या देव हुआ है ? नहीं! 'जिन' किसी व्यक्ति का नाम नहों, वह तो आत्मा की एक शुद्ध स्थिति है। अतः जिन एक नहीं, असंख्य नहीं, अनन्त हो गए हैं। जिस आत्मा की साधना अपने लक्ष्य पर पहुँची, वीतराग भाव का पूर्ण विकास हुआ कि वह जिन हो गया। जिनत्व का कहीं बाहर से आयात नहीं करना पड़ता है, वह तो आत्मा में ही छिपा रहता है। जैसे ही कषाय, मोह, मात्सर्य का पर्दा हटा कि जिनत्व जागृत हो जाता है।
जैन साहित्य में एक कहानी आती है-एक राजा था, कला का बड़ा रसिक था वह। उसके राज्य में कलाकारों का बहुत सम्मान था। नई-नई चित्र शैलियाँ उसके
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