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२१८ चिंतन की मनोभूमि घूरे पर फिंकवा देती है, किन्तु महाराज श्रेणिक पुत्रमोह के कारण उसे उठा लेते हैं, पक्षी के द्वारा काटी गई पुत्र की अंगुली का रक्त अपने मुँह से चूसकर ठीक करते हैं
और अपने हाथों से उसकी सेवा-परिचर्या करते हैं। पिता के वृद्ध होने पर वही पुत्र शासन सत्ता के व्यामोह में फंस जाता है, और अपने भाइयों व मंत्रीगण को गाँठकर सम्राट को पिजड़े में ठूस देता है। सत्ता का राग मनुष्य को कितना अंधा, पागल और क्रूर बना देता है यह इस घटना से स्पष्ट हो जाता है।
आगरा का यह विश्वविश्रुत ताजमहज, जिस मुगल सम्राट का प्रणय-स्वप्न है, उस शाहजहाँ को जिन्दगी के अन्तिम दिन जेल में बिताने पड़े थे। वह अपने ही पुत्र औरंगजेब द्वारा बन्दी बनाया गया। ऐसा क्यों ? इस्लाम के इस कट्टर अनुयायी शासक ने अपने यशस्वी और कलाप्रेमी पिता को कारागृह की चारदीवारी के अन्दर क्यों लूंस दिया, और क्यों अपने सगे भाइयों को कत्ल करके खुश हुआ ? मैं समझता हूँ, इन प्रश्नों का उत्तर वही एक है। सत्ता, धन और प्रतिष्ठा का उग्र राग ! जिस प्रकार द्वेष की वृत्तियाँ मनुष्य को पिशाच और राक्षस बना देती हैं वैसे ही राग की निम्न एवं क्षुद्र वृत्तियाँ भी मनुष्य को क्रूर और मूढ़ बनाने वाली हैं। राग वृत्ति का यह अधोमुखी प्रवाह है, जिसे हम स्वकेन्द्रित राग, मोह, व्यामोह और विमूढ़ता कहते हैं। ___ मैं समझता हूँ, द्वेष की अपेक्षा राग की विमूढ़ परिणतियों ने मनुष्य जाति का अधिक संहार एवं विनाश किया है। वैसे प्रत्येक पक्ष में राग के साथ द्वेष का पहलू जुडा ही रहता है। रामायण और महाभारत के युद्ध क्या हैं ? एक मनुष्य के कामराग की उदग्र फलश्रुति है, तो दूसरी मनुष्य के राज्यलोभ की रोमांचक कहानी है। वैसे राम-रावण के युद्ध में भी मनुष्य के अहंकार और द्वेष के प्रबल रूप मिलते हैं, किन्तु महाभारत के युद्ध का मुख्य स्रोत तो दुर्योधन के क्षुद्र अंहकार और क्रोध का एक दुष्परिपाक ही प्रतीत होता है। निष्कर्ष यह है कि मनुष्य जाति के युद्ध, संघर्ष और विनाश के इतिहास का मूल उत्स यही वृत्तियाँ हैं। राग की वृत्तियाँ : भीतरी आवरणः
राग की वृत्तियाँ कभी-कभी उदात्त रूप में भी व्यक्त होती हैं, वह मनुष्य को धर्म, समाज और राष्ट्र के लिए बलिदान होने को भी प्रेरित करती हैं और मनुष्य अपना प्राण हथेली में लेकर मौत से पिल पड़ता है। राग के इस ऊर्ध्वमुखी प्रवाह के उदाहरण भी इतिहास के पृष्ठों पर चमक रहे हैं और उनसे एक आदर्श प्रेरणा प्रस्फुरित हो रही है। राग का यह. ऊर्वीकरण मनुष्य के राष्ट्रीय एवं सामाजिक जीवन का मेरुदण्ड है, यह मानते हुए भी मैं आपसे उस भूमिका से ऊपर की एक बात और कह देना चाहता हूँ, वह है आध्यात्म की बात।
____ आध्यात्म के चिंतनशील आचार्यों ने द्वेष को जिस प्रकार एक बंधन तथा आवरण माना है, उसी प्रकार राग को भी। उनकी दृष्टि में ये दोनों आवरण हैं, और मन के आवरण हैं, भीतर के आवरण हैं।
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