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________________ जीवन में 'स्व' का विकास २१७ मैं देखता हूँ कि जिस संस्कृति में पिता को परमेश्वर, माता को भगवती और पत्नी को लक्ष्मी के रूप में पूजा गया है, उसी संस्कृति में पिता को कैदखाने में डाला गया, मूक पशु की तरह पिंजड़े में बन्द किया गया, माता को ठोकरें मारी गई, पत्नी को जुए के दाँव पर लगाया गया। आखिर यह सब किसलिए ? पिता की हत्या हुई, भाइयों का कत्ल हुआ, बन्धु और राष्ट्र के साथ विश्वासघात तथा द्रोह हुआ— यह सब क्यों हुआ ? आप में यदि सामाजिक और राजनीतिक प्रतिभा है, तो आप इनके राजनीतिक कारण बता सकते हैं, किन्तु मनुष्य के मन का सूक्ष्म विश्लेषण करने वाला मनोविश्लेषक और आध्यात्म की गुत्थियाँ सुलझाने वाला संत, उसे मनुष्य के मन की ग्रन्थियाँ एवं राग-द्वेष की सूक्ष्म वृत्तियाँ ही बतलाएगा। वस्तुतः वही इसका . है 1 एकमात्र मूल जिन्हें आप धर्मपुत्र कहते हैं, नीति और धर्म का प्रहरी समझते हैं, वे युधिष्ठिर द्रौपदी को, जो तेजस्वी नारी है, पाँच भाइयों की साझा है, उसे दाँव पर लगाते हुए सकुचाए तक नहीं । संस्कृति की यह कितनी बड़ी विडम्बना है ! इसका मूल कारण वही है - द्यूत का अनुराग ! और उसके पीछे खड़ा है सत्ता और विजय का व्यामोह ! मध्यकाल के भारतीय इतिहास के विक्रमादित्य सम्राट् चन्द्रगुप्त ने जिस शौर्यशाली वाकाटक वंश की परम सुन्दरी कन्या ध्रुवदेवी के साथ पुनर्विवाह किया, वह कौन थी ? चन्द्र के बड़े भाई रामगुप्त की पत्नी ! जब रामगुप्त शकों द्वारा बन्दी बना लिया गया, तो शकराज ने प्राणदण्ड से बचने का एक मार्ग बताया कि तुम अपनी पत्नी को हमारे चरणों में सौंप दो, उसके अद्वितीय सौन्दर्य का उपभोग करने दो। इस पर रामगुप्त ध्रुवदेवी को पत्र लिखता है, कि "मैं शकराज द्वारा बंदी बना लिया गया हूँ, मेरे लिए जीवन रखने का एक ही मार्ग है कि तुम शकराज की सेवा में तन-मन से समर्पित हो जाओ !" 4 यह घटना क्या बताती है ? एक सम्राट्, मगध और अवन्तिका के विशाल साम्राज्य का होनहार स्वामी, जिसका कर्त्तव्य था अपने धर्म की रक्षा करना, प्रजा के तन-धन और जीवन की रक्षा करना, पर वह अपनी पत्नी की भी रक्षा नहीं कर पा रहा है ! अपने जीते जी, अपने हाथों से अपनी पत्नी को, शत्रु के चरणों में समर्पित करना चाहता है, उसके उपभोग के लिए ! यह बात दूसरी है कि चन्द्रगुप्त के पराक्रम और सूझ-बूझ से यह दुर्घटना होते-होते बच गई ! किन्तु मैं देखता हूँ कि एक क्षत्रिय राजकुमार ! सम्राट समुद्रगुप्त का ज्येष्ठ पुत्र ! इतने नीचे स्तर पर क्यों आ गया ! अपने प्राणों के तुच्छ मोह और राग में अन्धा होकर ही तो । . मगध का प्रतापी सम्राट् अजातशत्रु कुणिक अपने पिता महाराज श्रेणिक को बन्दी बनाकर पिंजड़े में बन्द कर देता है। जैन आगम बताते हैं कि कुणिक के जन्म लेते ही उसकी माता महारानी चेलना भावी अनिष्ट की किसी आशंका से उसे बाहर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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