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राग का ऊर्वीकरण २१५ ऊर्ध्वमुखी रूप हैं, गुणानुराग, देव, गुरु, धर्म की शक्ति, सेवा, करुणा और सहयोग का आदर्श है—उसे भूल गए हैं, उन वृत्तियों को राग की कोटि में मानकर उनसे निरपेक्ष रहने की बात कहने लग गए हैं। चिंतन की यह एक बहुत बड़ी भूल है, इस भूल को समझना है, सुधारना है तभी हम जैन धर्म के पवित्र आदर्शों को जीवन में साकार बना सकेंगे और, राग के ऊर्वीकरण एवं पवित्रीकरण की प्रक्रिया सीख सकेंगे। प्रवृत्तियों और कषायों से मुक्त होने का सही मार्ग यही है। अशुभ से शुभ और शुभ से शुद्ध इस सोपानबद्ध प्रयाण से सिद्धि का द्वार आसानी से मिल सकता है। हनुमान कूद तो हमें कभी-कभी निम्नतम दशा में ही बुरी तरह से पटक दे सकती है। राग का ऊ/करण-सोपानबद्ध प्रयाण ही इसके लिए उचित मार्ग है।
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