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२१० चिंतन की मनोभूमि है, संसार है। सुख-दुःख का बंधन है। हमें लोक-परलोक से ऊपर उठकर 'लोकातीत' दृष्टि से सोचना है और वह लोकातीत दृष्टि ही वीतराग दृष्टि है।
वीतराग का जब निर्वाण होता है, तो हम क्या कहते हैं ? परलोकवासी हो गए....? नहीं, परलोक का अर्थ है, पुनर्जन्म : और पुनर्जन्म तभी होगा जब आत्मा में राग-द्वेष के संस्कार जगे होंगे। वीतराग की मृत्यु का अर्थ है—लोकातीत दशा को प्राप्त होना। यदि हम लोक-परलोक के दृष्टिमोह से मुक्त हो जाते हैं, तो इस लोक में भी लोकातीत दशा की अनुभूति कर सकते हैं। देह में भी विदेह स्थिति प्राप्त कर सकते हैं। श्रीमद्रामचन्द्र के शब्दों में -
"देहछतां जेहनी दशा वर्ते देहातीत।
ते ज्ञानी ना चरणमां वन्दन हो अगणीत॥" राग का प्रत्यावर्तन :
लोक-परलोक के सम्बन्ध में जैसी कुछ भ्रान्त धारणाएँ हैं, वैसी ही वीतरागता के सम्बन्ध में भी हैं। वीतरागता एक बहुत ऊँची भूमिका है। उसके लिए अत्यन्त पुरुषार्थ जगाने की आवश्यकता है। परन्तु हम देखते हैं, नीचे की भूमिकाओं में क्षुद्रमन उसका प्रदर्शन करते हैं और कर्त्तव्य से च्युत होते हैं। अत: आज के सामान्य साधक के समक्ष प्रश्न यह है कि जब तक यह लोकातीत स्थिति प्राप्त न हो जाय, तब तक इस लोक में कैसे जिएँ ? जब तक देहातीत दशा न आए तब तक देह को किस रूप में सम्भालें? जब तक वीतराग दृष्टि नहीं जागती है, तब तक राग को किस रूप में प्रत्यावर्तित करें कि वह कोई खास बन्धन नहीं बने। यदि बन्धन भी बने तो कम से कम लोहे की बेड़ी तो न बने ! जब तक आत्मा के ज्योतिर्मय स्वरूप का दर्शन न हो, तब तक इतना तो करें कि कम से कम अन्धकार में भटक कर ठोकरें तो न खाएँ?
साधक के सामने यह एक उलझा हुआ प्रश्न खड़ा है। वह समाधान चाहता है और समाधान खोजना ही होगा। आचार्यों ने इसका उत्तर दिया--जब तक वीतरागता नहीं आए, तब तक राग को शुभ.बनाते रहो। राग अशुभ भी होता है, शुभ भी। अशुभ राग अपवित्र है, लोहे की बेड़ी है, शुभ राग पवित्र है, सोने की बेड़ी है !
भगवान् महावीर ने लोक-परलोक की आराधना करने का जो उद्घोष दिया है, वह राग को शुभ एवं पवित्र बनाने की एक प्रक्रिया है। जैसा मैंने आपसे कहावीतराग दशा तो लोकातीत दशा है। वह लोक-परलोक को सुधारने की बात ही कहाँ है ? जो शुद्ध दशा है वहाँ फिर सुधार की क्या बात है ? अशुद्ध को ही सुधारा जाता है, इसलिए सामान्य साधक के लिए शुद्ध से पहले शुभ की भूमिका रखी गयी है, वीतरागता से पूर्व शुभराग का मार्ग बताया गया है।
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