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साधना का मार्ग २०३ चीज। देखा-देखी का योग, योग नहीं रोग है। और वह रोग साधक को गला देता है। कहा भी है
. 'देखादेखी साधे जोग, छीजे काया बाढ़े रोग।' साधना का मानदण्ड :
___ संसार में एक दिन भगवान् पार्श्वनाथ और भगवान् महावीर आए। उन्होंने देखा कि चारों ओर ये भौंकने वाले ही शोर मचा रहे हैं कुछ गृहस्थ के. वेष में, तो कुछ साधु के वेष में। उन्होंने पूछा-"क्यों भाई, तुम.किसलिए भौंक रहे हो ? क्या तुम्हें कुछ दिखाई पड़ा? वासना, लोभ, क्रोध, राग-द्वेष का चोर तुमने कहीं देखा है ?" तो वे सब चुप हो गये। जो अपनी आँख बन्द कर सिर्फ एक-दूसरे के अनुकरण पर चल . रहे थे, उन्हें टोका-''ऐ भौंकने वालो ! पहले देखो कि तुम किसके लिए भौंक रहे हो। उस चोर की सत्ता कहाँ है ? किस रूप में है वह ?" ____ बात यह है कि जो साधना के मार्ग पर दौड़ते तो जा रहे हैं, किन्तु जिन्हें अपनी मंजिल के बारे में कोई ज्ञान नहीं है, उन्हीं साधुओं के लिए भगवान् महावीर के दर्शन में कहा गया है कि वे जन्मजन्मान्तर में साधु का बाना कितनी बार ले चुके हैं। यदि उन बानों को एकत्र किया जाय, तो मेरु पर्वत के सामन एक गगनचुम्बी ऊँचा ढेर हो सकता है। परन्तु आत्मा के अन्तर्तम में एक इंच भी परिवर्तन नहीं आया इस प्रकार के अंध साधु जीवन से तो गृहस्थ ही अच्छा है, जो सेवा, अहिंसा और करुणा के मार्ग पर चल रहा है। गृहस्थ जीवन में अनेक संघर्ष आते हैं। उस पर परिवार, समाज आदि के रूप में विभिन्न प्रकार के उत्तरदायित्वों का बोझ रहता है। परन्तु यदि उसमें भी ईमानदारी है, सेवा है, त्याग है और दृष्टि में निर्लिप्तता है, तो वह वेषधारी साधु से अच्छा है, बहुत अच्छा है। भगवान् महावीर ने साधना का मानदण्ड वेष को कभी नहीं माना है, भावना को माना है। अगर मानव सच्चे अर्थ में साधु बना, सही दृष्टि मिली, जीवन में त्याग और वैराग्य उतरा, लक्ष्य की झाँकी मिली, तो उन गृहस्थों से वह बहुत ऊँचा है, बहुत महान् है, जो कि काम, क्रोध, मोह, लोभ आदि के सघन अंधकार में जीवन गुजार रहा है। अतः निष्कर्ष यह निकला कि चाहे साधु हो या गृहस्थ, यदि प्रामाणिकता और ईमानदारी से अपने लक्ष्य की ओर चल रहा है, तो ठीक है, अन्यथा दोनों की ही स्थिति कोई महत्त्व की नहीं है। हम कह चुके हैं कि साधना का मूल्यांकन साधु या गृहस्थ के नाम से नहीं होता, वेष से नहीं होता, आत्मा से होता है। चाहे वह छोटा हो या बड़ा, जिसमें ईमानदारी है, प्रामाणिकता है, वही श्रेष्ठ है, वही ऊँचा है। दो समानान्तर रेखाएँ:
साधु और गृहस्थ जीवन की तरह ही एक प्रश्न यह उपस्थित होता है कि • बड़ा भाई बनना अच्छा होता है या छोटा भाई ? दोनों में कौन बड़ा है, कौन छोटा है ?
कौन अच्छा है, कौन बुरा ? महाभारत में पाण्डवों का उदाहरण है—युधिष्ठिर बड़े थे
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