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| २०२ चिंतन की मनोभूमि मध्य-मार्ग :
. भगवान् महावीर के सामने भी यह प्रश्न उठा था। संसार के हर महापुरुष के समक्ष यह प्रश्न आया है। हर साधारण व्यक्ति के समक्ष भी यह प्रश्न आता है। चूंकि संसार का हर प्राणी राहगीर है, पथिक है, अत: उसके समक्ष पहला प्रश्न राह का आता है। वह कौन-सी राह पर चले, जिससे जीवन में आनन्द का, उल्लास का वातावरण मिले। भगवान् महावीर ने इसका बहुत ही सुन्दर समाधान दिया है। उन्होंने दोनों 'अति' से बचकर बीच का मार्ग दिखाया है। जीवन के दोनों किनारों से बचकर उनकी विचार-गंगा जीवन के बीचों-बीच प्रवाहित हुई है। स्पष्टवाद या अनेकान्तवाद की सुन्दर नौका जब चिन्तन के सागर में बहने को हो, तब डूबने का तो कोई प्रश्न ही नहीं रहता। इनकी अनेकान्तप्रधान वाणी से सत्य की उपलब्धि होती है। भगवान् की उसी वाणी को गणधरों ने इस रूप में प्रकट किया है
"सन्ति एगेहिं भिक्खूहिं, गारत्था संजमोत्तरा।
गारत्थेहिं सव्वेहिं, साहवो संजमुत्तरा॥" कछ साध और भिक्ष ऐसे हैं कि साधना के मार्ग पर लड़खड़ाते चल रहे हैं, उन्हें दृष्टि नहीं मिली, किंतु फिर भी चले जा रहे हैं। जीवन के अन्तरलक्ष्यों को नहीं पाकर ओघ संज्ञा से ही चले जा रहे हैं एक के पीछे एक ! दृष्टि तो किसी एक को मिली, जिसे मार्ग का ज्ञान प्राप्त हुआ। वह चला उस मार्ग पर। बाकी साधक तो उस महान् साधक के पीछे चलते रहे, केवल उसकी वाणी के सहारे और, कालान्तर में आगे आने वाले, उसकी वाणी को भी भूलते चले गये। उनकी दशा गाँव के उस कुत्ते के समान है कि-गाँव में चोर आया। जिस घर पर वह गया, उस घर का कुत्ता चोर को देखते ही भौंकने लग गया। अब क्या था, आसपास में दूसरे घरों के कुत्ते भी उस घर के कुत्ते की भौंकने की आवाज सुनकर भौंकने लग गए। इन भौंकने वाले कुत्तों में से चोर को तो देखा उस पहले कुत्ते ने, परन्तु भौंकना अन्य सारे कुत्तों ने शुरू कर दिया। इस प्रकार चोर को देखने वाला द्रष्टा कुत्ता तो एक ही है, भौंकना सुनकर केवल भौंकने वाले हैं, द्रष्टा नहीं हैं। यदि दूसरे कुत्तों से भौंकने का कारण पूछा जाय तो यही कहेंगे कि मालूम नहीं, क्या बात है ? उधर से भौंकने की आवाज़ आई, इसलिए हम भौंक रहे हैं। परन्तु उनसे पूछा जाए कि क्या तुमने चोर को देखा है, वह चोर कैसा है, तो वे क्या बता सकेंगे। चूँकि वे तो सिर्फ उस द्रष्टा कुत्ते की आवाज पर ही भौंके जा रहे हैं। बात यह जरूर कड़वी है, जो संभवत: कुछ साथियों के.मन को चोट कर सकती है, किन्तु सत्य यही है कि हजारों साधकों के झुंड में कोई एक ही ऐसा गुरु था, जो द्रष्टा था और जिसे आत्मा-परमात्मा के उस दिव्य स्वरूप का ‘साक्षात्कार हुआ था। सत्य की भूमिका को छूने वाला वह एक ही था, और वह भी संसार का एक ही जीव था। संसार के बाकी गुरु-चेले तो बस देखा-देखी भौंकने वाले हैं। सत्य का साक्षात्कार और चीज है, और सत्य के साक्षात्कार का दंभ और
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