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धर्म : एक चिंतन | १७७ सम्बन्ध में एक पाश्चात्य विद्वान् का कथन है कि धर्म मनुष्य के मन की दुष्प्रवृत्तियों और वासनाओं को नियंत्रित करने एवं आत्मा के समग्र शुभ का लाभ प्राप्त करने का एक अभ्यास है। धर्म चरित्र की उत्कृष्टता है। अधर्म चरित्र का कलंक है । कर्त्तव्यपालन में धर्म का प्रकाशन होता है, इसके विपरीत पापकर्मों में अधर्म उद्भूत होता है । धर्म आत्मा की एक स्वाभाविक वृत्ति का नाम है।
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