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धर्म : एक चिंतन | १७५
कोई श्वेताम्बर हो, या दिगम्बर हो, जैन हो, या बौद्ध अथवा वैष्णव हो । ये कोई धर्म नहीं हैं, मुक्ति के मार्ग नहीं हैं। धर्म कोई दस हजार, या दो हजार वर्ष के परम्परागत प्रचार का परिणाम नहीं है, वह तो एक अखंड शाश्वत और परिष्कृत विचार है और हमारी विशुद्ध आन्तरिक चेतना है । मुक्ति उसे ही मिल सकती है, जिसकी साधना समभाव से परिपूर्ण है । जो दुःख में भी और सुख में भी सम है, निर्द्वन्द्व है, वीतराग है। आप लोग वर्षा के समय बरसाती ओढ़कर निकलते हैं, कितना ही पानी बरसे, वह भीगती नहीं, गीली नहीं होती, पानी बह गया और बरसाती सूखी की सूखी । साधक का मन भी बरसाती के समान हो जाना चाहिए। सुख का पानी गिरे या दुःख का, मन को भीगना नहीं चाहिए । यही द्वन्द्वों से अलिप्त रहने की प्रक्रिया, वीतरागुता की साधना है। और यही वीतरागता हमारी शुद्ध अन्तचश्चेतना अर्थात् धर्म है।
धर्म के रूप :
जैनाचार्यों ने धर्म के सम्बन्ध में बहुत ही गहरा चिंतन किया है। वे मननचिन्तन की डुबकियाँ लगाते रहे और साधना के बहुमूल्य चमकते मोती निकालते रहे। उन्होंने धर्म के दो रूप बताए हैं-एक, निश्चय धर्म और दूसरा, व्यवहार धर्म | किन्तु वस्तुतः धर्म दो नहीं होते, एक ही होता है । किन्तु धर्म का वातावरण तैयार करने वाली तथा प्रकार की साधन-सामग्रियों को भी धर्म की परिधि में लेकर, उसके दो रूप बना दिए हैं ।
ज्ञान
व्यवहार धर्म का अर्थ है, निश्चय धर्म तक पहुँचने के लिए पृष्ठभूमि तैयार करने वाला धर्म । साधना की उत्तरोत्तर प्रेरणा जगाने के लिए और उसका अधिकाधिक प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) लेने के लिए व्यवहार धर्म की आवश्यकता है। यह एक प्रकार का स्कूल है। स्कूल ज्ञान का दावेदार नहीं होता किन्तु ज्ञान का वातावरण जरूर निर्माण करता है। स्कूल में आने वाले के भीतर प्रतिभा है, तो वह विद्वान् बन सकता है, की ज्योति प्राप्त कर सकता है और यदि निरा बुद्धराज है, तो वर्षों तक स्कूल की बैंचें तोड़ने के बाद भी वैसा का वैसा ही रहेगा। स्कूल में यह शक्ति नहीं कि किसी को विद्वान् बना ही दे । यह बात व्यवहार धर्म की हैं। बाह्य क्रियाकांड किसी का कल्याण करने की गारण्टी नहीं दे सकता। जिसके अन्तर में अंशत: ही सही, निश्चय धर्म की जागृति हुई है, उसी का कल्याण - हो सकता है, अन्यथा नहीं। हाँ, परिस्थितियों के निर्माण में व्यवहार धर्म का सहयोग अवश्य रहता हैं ।
वर्तमान परिस्थितियों में हमारे जीवन में निश्चय धर्म की साधना जागनी चाहिए । व्यवहार धर्म के कारण जो विकट विवाद, समस्याएँ और अनेक सिरदर्द पैदा करने वाले प्रश्न कौंध रहे हैं, उनका समाधान सिर्फ निश्चय धर्म की ओर उन्मुख होने से ही हो सकता है।
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