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धर्म : एक चिंतन १७३ भूख एक कुतिया है, यह शोर करती है, तो शान्ति भंग होती है, ध्यान स्खलित हो जाता है. अत: इसे भोजन का टुकड़ा डाल दो और फिर शान्ति से अपनी साधना करते रहो। धर्म का बाह्य अतिवाद :
भोजन के सम्बन्ध में जो सर्वसम्मत विचार है, काश! वही विचार यदि वस्त्र के सम्बन्ध में भी किया जाता, तो इस महत्त्वपूर्ण परम्परा के दो टुकड़े नहीं हुए होते। जिन साधक आत्माओं को वस्त्र के अभाव में भी शान्ति रह सकती हो, आकुलता नहीं जगती हो, तो उनके लिए वस्त्र की बाध्यता नहीं है। किन्तु वस्त्र के अभाव में जिनकी शांति भंग होती है, उन्हें समभावपूर्वक वस्त्र धारण करने की अनुमति दी जाए, तो इसमें कौन-सा अधर्म हो जाता है ? भगवान् महावीर के समय में सचेलक और अचेलक (सवस्त्र और अवस्त्र) दोनों परम्पराएँ थीं। तब न निर्वस्त्र होने का आग्रह था और न सवस्त्र होने का। न वस्त्र से मुक्ति अटकती थी और न अवस्त्र से। वस्त्र से मुक्ति तब अटकने लगी, जब हमारा धर्म बाहर में अटक गया, अन्दर में झाँकना बन्द कर दिया गया।
वैष्णव परम्परा भी इसी प्रकार जब बाहर में अटकने लगी, तो उसका धर्म भी बाहर में अटक गया और वह एक बुद्धिवादी मनुष्य के लिए निरा उपहास बनकर रह गया। अतीत में तिलक को लेकर वैष्णव और शैव भक्त कितने झगड़ते रहे हैं, परस्पर कितने टकराते रहे हैं ? कोई सीधा तिलक लगाता है तो कोई टेढ़ा, कोई त्रिशूल मार्का, तो कोई यू (U) मार्का और कोई सिर्फ गोल बिन्दु ही और, तिलक को यहाँ तक तूल दिया गया कि तिलक लगाए बिना मुक्ति नहीं होती। तिलक लगा लिया तो दुराचारी की आत्मा को भी बैकुण्ठ का रिजर्वेशन मिल गया!
वैष्णव परम्परा में एक कथा आती है—एक दुराचारी वन में किसी वृक्ष के नीचे सोया था। वहीं सोये-सोये उसके हाथ-पैर ठंडे पड़ गए और प्राण कूच कर गए। वृक्ष की टहनी पर एक चिडिया बैठी थी, उसने दराचारी के शिर पर बीट कर दी इधर दुराचारी की आत्मा को लेने के लिए यम के दूत आये, तो उधर विष्णु के दूत भी पहुँचे। यमदूतों ने कहा-यह दुराचारी था, इसलिए इसे नरक में ले जायेंगे। इस पर विष्णु के दूत बोले-चाहे कितना ही दुराचारी रहा हो, पर इसके माथे पर तिलक लगा है, इसलिए यह स्वर्ग का अधिकारी हो गया। दोनों दूतों में इस पर खूब गर्मागर्म बहसें हुईं, लड़े-झगड़े, आखिर विष्णु के दूत उसे स्वर्ग में ले ही गए। दुराचार- ।। सदाचार कुछ नहीं, केवल तिलक ही सब कुछ हो गया, वही बाजी मार ले गया। तिलक भी विचारपूर्वक कहाँ लगा? वह तो चिड़िया की बीट थी। कुछ भी हो तिलक तो हो गया!
__ सोचता हूँ, इन गल्पकथाओं का क्या उद्देश्य है ? जीवन-निर्माण की दिशा में इनकी क्या उपयोगिता है ? मस्तक पर पड़ी एक चिड़िया की बीट को ही तिलक
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