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नयवाद । १६३ ।
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छोड़कर नयों के प्रतिपादन में मध्यम मार्ग को ही अपनाया गया है। नयों के सम्बन्ध में एक बात कही जाती है, कि जितने प्रकार के वचन हैं, उतने ही प्रकार के नय हैं। इस पर से दो तथ्य फलित होते हैं-नयों की संख्या स्थिर नहीं है और नयों का वचन के साथ सम्बन्ध रहा हुआ है, फिर भी यहाँ पर इतना बतला देना आवश्यक है कि स्थानांग सूत्र में और अनुयोग द्वार - सूत्र में सात नयों का स्पष्ट उल्लेख है ! दिगम्बर परम्परा में भी उक्त सात नय माने गये हैं । किन्तु वाचक उमास्वाति प्रणीत 'तत्त्वार्थ सूत्र' में मूलरूप में पाँच नयों का उल्लेख है— नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र और शब्द | शब्द नय के तीन भेद किए गए हैं, जो इस प्रकार हैं-साम्प्रत, समभिरूढ़ और एवम्भूत। आचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने अपने दार्शनिक ग्रन्थ 'सन्मति प्रकरण' में नयों की संख्या और उनके वर्गीकरण में एक नयी शैली को अपनाया है । वे नैगम नय को छोड़कर शेष छह भेदों को मानते हैं। इनसे पूर्व कहीं भी यह शैली और यह पद्धति देखने को नहीं मिलती है। यह एक तर्क- पूर्ण दार्शनिक शैली है। वादिदेव सूरि ने स्वप्रणीत 'प्रमाणनय-तत्त्वालोक' ग्रन्थ में आगम परम्परा के अनुसार नैगम से लेकर एवम्भूत तक के सात नयों को ही स्वीकार किया है। इस प्रकार नयों की संख्या के सम्बन्ध में विभिन्न आचार्यों ने विभिन्न विचार अभिव्यक्त किए हैं, किन्तु मूल विचार सबका एक ही है।
मयों की संख्या पर विचार करने के बाद, नयों के वर्गीकरण का प्रश्न सामने आता है। नयों का वर्गीकरण विविध प्रकार से और विभिन्न शैली से किया गया है। सबसे पहला वर्गीकरण यह है कि नय के दो भेद हैं - अर्थ - नय और शब्द - नय । जिस विचार में शब्द की गौणता और अर्थ की मुख्यता रहती है, वह अर्थ-नय कहा जाता है। जिस विचार में अर्थ की गौणता और शब्द की मुख्यता रहती है, वह शब्दनय है। इस वर्गीकरण के अनुसार नैगम से ऋजु तक के नय अर्थ-नय हैं, और शब्द से एवम्भूत तक के नय, शब्द - नय हैं। एक दूसरे वर्गीकरण के अनुसार नय के दो भेद हैं— ज्ञान - नय और क्रिया-नय । किसी पदार्थ के वास्तविक स्वरूप का परिबोध करना, ज्ञान- नय है। ज्ञान-नय से प्राप्त बोध को जीवन में धारण करने का प्रयत्न करना, क्रिया- नय है। तीसरे प्रकार का वर्गीकरण इस प्रकार से है कि नय के दो भेद हैं—- द्रव्य - नय और भाव- नय । शब्द- प्रधान अथवा वचनात्मक नय को द्रव्य-नय कहा जाता है, और ज्ञानप्रधान अथवा ज्ञानात्मक नय को भाव-नय कहा जाता है । चतुर्थ प्रकार का वर्गीक भी है। इसके अनुसार नय के दो भेद हैं-निश्चय नय और व्यवहार नय । जो नृय वस्तु के वास्तविक स्वरूप को बतलाए वह निश्चय नय कहा जाता है। जो नय अन्य पदार्थ के निमित्त से वस्तु का अन्य रूप बतलाए, वह. 'व्यवहार-नय कहा जाता है। एक पाँचवें प्रकार का भी नय का वर्गीकरण किया गया है— सुनय और दुर्नय । अनन्त धर्मात्मक वस्तु के एक धर्म को ग्रहण करने वाला और
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