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१५८ चिंतन की मनोभूमि वाले नय को नैगम नय कहते हैं। नैगम नय के दो भेद हैं—सर्वग्राही औद देशग्राही। क्योंकि शब्द का प्रयोग दो ही प्रकार से हो सकता है-एक सामान्य अंश की अपेक्षा से और दूसरा विशेष अंश की अपेक्षा से। सामान्य अंश का आधार लेकर प्रयुक्त होने वाले नय को सर्वग्राही नैगम नय कहते हैं। विशेष अंश का आश्रय लेकर प्रयुक्त होने वाले नय को देश-ग्राही नैगम नय कहते हैं। उदाहरण के लिए, जब हम यह कहते हैं कि 'यह घड़ा है' यहाँ पर यह विवक्षा नहीं की जाती कि 'यह घड़ा' चाँदी का है, सोने का है अथवा पीतल का है अथवा वह सफेद है या काला है, तो यह सर्वग्राही सामान्य दृष्टि है। किन्तु जब यह कहा जाता है, कि 'यह चाँदी का घट है, यह सोने का घट है और यह पीतल का घट है, अथवा यह सफेद है या काला है, तो यह कथन पूर्व की अपेक्षा विशेषग्राही हो जाता है। जब दृष्टि विशेष की ओर न जाकर सामान्य तक ही रहती है, तब उसे सर्वग्राही नैगम नय कहा जाता है। इसके विपरीत जब दृष्टि विशेष की ओर जाती है, तब उसे देशग्राही नैगम नय कहा जाता है। एक दूसरे प्रकार से नैगम नय के तीन भेद किए हैं— भूत नैगम नय, भावी नैगम नय और वर्तमान नैगम नय। अतीत काल का वर्तमान काल में संकल्प भूत नैगम नय है। जैसे यह कहना कि आज 'महावीर जयन्ती है।' यहाँ आज का अर्थ है-वर्तमान दिवस. लेकिन उसमें संकल्प हजारों वर्ष पहले के दिन का किया गया है। भविष्य का वर्तमान में संकल्प करना भावी नैगम नय है। जैसे अरिहन्त को सिद्ध कहना। यहाँ पर भविष्य में होने वाली सिद्ध पर्याय को वर्तमान में कह दिया गया है। किसी कार्य को प्रारम्भ कर दिया गया हो, परन्तु वह अभी तक पूर्ण नहीं हुआ हो, फिर भी उसे पूर्ण कह देना, वर्तमान नैगम नय है। जैसे यह कहना कि आज तो भात बनाया है'। यद्यपि भात बना नहीं है, फिर भी उसे बना हुआ कहना । इस प्रकार नैगम नय के विविध रूपों का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में किया गया है।
सात नयों में दूसरा नय है-संग्रह। वस्तु के विशेष से रहित द्रव्यत्व आदि सामान्यमात्र को ग्रहण करने वाला विचार संग्रह नय है जैसे कि जीव कहने से नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव और सिद्ध सब का ग्रहण हो जाता है। संग्रह नय एक शब्द के द्वारा अनेक पदार्थों को भी ग्रहण करता है अथवा एक अंश या अवयव का नाम लेने से समग्रगुण और पर्याय से सहित वस्तु को ग्रहण करने वाला विचार संग्रह नय है। जैसे किसी सेठ ने अपने सेवक को आदेश दिया कि दातुन लाओ। दातुन शब्द को सुनकर वह सेवक अपने स्वामी को केवल दातुन ही नहीं देता, बल्कि साथ में जीभी, पानी का लोटा और हाथ पोंछने के लिए तौलिया भी प्रस्तुत कर देता है। यहाँ पर 'दातुन' इतना ही कहने से समग्र सामग्री का संग्रह हो गया है। संग्रह नय के दो भेद हैं—पर संग्रह और अपर संग्रह। सत्ता मात्र अर्थात् द्रव्यमात्र को ग्रहण करने वाला नय पर संग्रह नय कहलाता है, क्योंकि यह नय सत् या द्रव्य कहने से जीव और अजीव के विशेष भेदों को न मानकर केवल द्रव्य मात्र का ग्रहण करता है। जीव और
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