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________________ उपाध्याय श्री अमरमुनि द्वारा प्रणीत 'चिन्तन की मनोभूमि' नामक ग्रन्थ अत्यन्त विचारोत्पादक है। इसमें विद्वान् लेखक ने जैन दर्शन के आधार पर मानव जीवन के गम्भीर रहस्यों, वर्तमान युग में धर्म की उपादेयता, मनुष्य का धार्मिक उन्नयन एवं अन्य महत्त्वपूर्ण तत्त्वों के विषय में नवीन, समयोचित तथा अत्यन्त उपयोगी विचार प्रस्तुत किया है। यह ग्रन्थ विचारशील विद्वत्जनों के लिए विशेष रूप से पठनीय है। ८-३-१९७० ई. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी - ५ ******** डॉ. रामशंकर मिश्र कार्यकारी अध्यक्ष, भारतीय दर्शन एवं धर्म विभाग *********** Jain Education International उपाध्याय श्री अमरमुनिजी का 'चिन्तन की मनोभूमि' नामक ग्रन्थ देखने का मौका मिला। आपके विचार स्वतन्त्र हैं और वे अपनी उपलब्धि के ही फल हैं। परम्परागत भावना तो चाहिए, लेकिन अपने स्वतन्त्र विचार से उसे उद्दीपित करना भी महत्त्वपूर्ण काम है। जैन धर्म के मूल में इसी प्रकार के स्वतन्त्र विचार का विशेष स्थान रहा है । **** मैं आशा करता हूँ, इस ग्रन्थ के अध्ययन से जैन धर्म - प्रेमी तथा विद्वत्समाज बड़ा लाभ उठाएँगे। ७-३-१९७० ई. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी-५ डॉ. सिद्धेश्वर भट्टाचार्य, एम. ए., पी-एच. डी., डी. लिट्, न्यायतीर्थ, न्याय वैशेषिक आकार्य (गोल्ड मैडलिस्ट) अध्यक्ष, संस्कृत एवं पाली विभाग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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