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________________ साम्प्रदायिकता के संकुचित क्षेत्र से उठाकर विश्वधर्म की विशालता पर पहँचा देता है। लिखने की शैली बड़ी ही सरस-सुबोध है। कठिन से कठिन दार्शनिक तत्त्व दर्पण के समान प्रकाशमय तथा आकर्षक प्रतीत होते हैं। मुनिजी के समग्रविचारों से सहमत होना असम्भव है, परन्तु उनके अधिकांश विचार तथा व्याख्यान बड़े ही सुन्दर, आवर्जक तथा प्रभावशाली हैं। मैं ऐसे मनोरम ग्रन्थ के प्रचार की कामना करता हूँ। "विद्याविलास" डॉ. बलदेव उपाध्याय रवीन्द्रपुरी, दुर्गाकुण्ड प्राप्तावकाश संचालक, वाराणसी-५ अनुसन्धान संस्थान, फाल्गुन अमा. सं. २०२६ वाराणसेय संस्कृत विश्वविद्यालय ********************************** उपाध्याय श्री अमरमुनिजी की पुस्तक 'चिन्तन की मनोभूमि' का मैंने अवलोकन किया। यह पुस्तक जैन धर्म और दर्शन के आधार पर लिखी गई प्राचीन एवं आधुनिक समस्याओं के ऊपर दार्शनिक दृष्टिकोण से विचारों की लेखमाला है। लेखक ने बहुत-सी समस्याओं पर स्वतन्त्र रूप से विचार किया है, जो कि आधुनिक युगीन पाठकों को बहुत पसन्द आने वाला है। .. उपाध्यायजी की लेखन-शैली बहुत सुबोध और रुचिकर है और भाषा बहुत सरल और सुन्दर। सरलता से समझ में आने वाले दृष्टान्तों एवं छोटी-छोटी कहानियों के द्वारा उपाध्यायजी ने अपने मन्तव्य को रुचिपूर्ण बना दिया है। कहीं पर भी दार्शनिक जटिलताओं में पाठक को नहीं फँसाया है। इसलिए दर्शन में रुचि रखने वालों के लिए यह पुस्तक बड़ी लाभदायक सिद्ध हो सकती है। इस पुस्तक को लिखने के लिए उपाध्यायजी हिन्दी पाठकों के धन्यवाद के पात्र हैं। वस्तुतः इस प्रकार की पुस्तकों की हिन्दी में अतीव आवश्यकता है। इस बहुमूल्य पुस्तक के प्रकाशन पर मैं उपाध्यायजी को बधाई देता हूँ। पुस्तक का सम्पादन भी बड़े सुन्दर ढंग से किया गया है। ६-३-१९७० ई. डॉ. भीखन लाल आत्रेय, महाशिवरात्रि भूतपूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, दर्शन, मनोविज्ञान तथा भारतीय दर्शन एवं धर्म ********************************** Jain Education International : For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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