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________________ मानव चिरकाल से अपनी समस्याओं को सुलझाता हुआ आ रहा है। जीवन को सुख-शान्तिमय बनाने के उद्देश्य से कभी वह एक को देखता है तो कभी अनेक को; कभी व्यष्टि को, तो कभी समष्टि को; कभी आत्मा को, तो कभी परमात्मा को। उसकी दृष्टि में कभी अध्यात्म प्रधान बन जाता है, तो कभी भौतिकता बलवती हो जाती है; कभी वह धर्म के प्रति श्रद्धा रखता है, तो कभी विज्ञान का आश्रय लेता है। कभी उसे प्राचीनता अच्छी लगती है, तो कभी वह नवीनता को गले लगाता है। पर, जब कभी वह एक को त्यागकर मात्र दूसरे को ही पूर्णरूपेण जीवन का आधार मान लेता है, तब वह एकांगी बन जाता है और अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में असफल हो जाता है। कारण, मानव जीवन की सफलता, समन्वयात्मकता से परिपुष्ट होती है। उपाध्याय अमरमुनिजी समन्वयवाद के एक सच्चे उपासक हैं और अपनी साधना की पूर्णता के लिए इन्होंने दार्शनिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिकसभी दृष्टिकोणों को अपनाया है, जिनकी जानकारी इनकी नयी कृति 'चिन्तन की मनोभूमि' से होती है। __ प्रस्तुत ग्रन्थ अपने जन-हितकारी दृष्टिकोण के कारण, जो आज के मानव का दिशा-निर्देश करता है, सामान्य तौर से भारतीय दर्शन एवं विशेषकर जैन-दर्शन में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। हमें पूर्ण विश्वास है कि उच्चकोटि के विद्वान् तथा साथ ही साधारण पाठकगण भी इसका हार्दिक स्वागत करेंगे और इससे समुचित लाभ उठाएँगे। नई दिल्ली (सेठ) गोविन्ददास, २२-२-१९७० ई. संसद सदस्य ********************************** . मैंने उपाध्याय अमरमुनि रचित 'चिन्तन की मनोभूमि' नामक ग्रन्थ का स्थानस्थान पर निरीक्षण किया। मुनिजी विशाल दृष्टि से मण्डित प्रतिभाशाली लेखक हैं। उनकी दृष्टि पैनी है तथा लेखनी अर्थबोधिनी है। फलतः यह ग्रन्थ जैनधर्म को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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