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________________ १२० चिंतन की मनोभूमि स्याद्वाद आँखों वाला दर्शन है। अतः वह इन एकान्तवादी अन्धे दर्शनों को समझाता है कि तुम्हारी मान्यता किसी एक दृष्टि से ही ठीक हो सकती है, सब दृष्टि से नहीं। अपने एक अंश को सर्वथा सब अपेक्षा से सत्य, और दूसरे अंशों को असत्य कहना, बिल्कुल अनुचित है । स्याद्वाद इस प्रकार एकान्तवादी दर्शन की भूल बताकर पदार्थ के सत्य स्वरूप को आगे रखता है और प्रत्येक सम्प्रदाय को किसी एक अपेक्षा से ठीक बतलाने के कारण साम्प्रदायिक कलह को शान्त करने की क्षमता रखता है । केवल साम्प्रदायिक कलह को ही नहीं, यदि स्याद्वाद का जीवन के हर क्षेत्र में प्रयोग किया जाए, तो क्या परिवार, क्या समाज, और क्या राष्ट्र, सभी में प्रेम एवं सद्भावना के सुखद वातावरण का निर्माण हो सकता है। कलह और संघर्ष का बीज एक-दूसरे के दृष्टिकोण को न समझने में ही है । स्याद्वाद दूसरे के दृष्टिकोण को समझने में सहायक होता है। यहाँ तक स्याद्वाद को समझने के लिए स्थूल लौकिक उदाहरण ही काम में लाए गए हैं। अब दार्शनिक उदाहरणों का मर्म भी समझ लेना चाहिए। यह विषय जरा गम्भीर है, अतः यहाँ सूक्ष्म निरीक्षण-पद्धति से काम लेना अधिक अच्छा होगा। नित्य और अनित्य : जैन-धर्म कहता है कि प्रत्येक पदार्थ नित्य भी है और अनित्य भी है साधारण लोग इस बात पर घपले में पड़ जाते हैं कि जो नित्य है, वह अनित्य कैसे हो सकता है ? और जो अनित्य है, वह नित्य कैंसे हो सकता है ? परन्तु जैन-धर्म अनेकान्तवाद के द्वारा सहज ही में इस समस्या को सुलझा देता है। कल्पना कीजिए— एक घड़ा है। हम देखते हैं कि जिस मिट्टी से घड़ा बना है, उसी से सिकोरा, सुराही आदि और भी कई प्रकार के बर्तन बनते हैं । यदि उस घड़े को तोड़ कर हम उसी की मिट्टी से बनाया गया कोई दूसरा बर्तन किसी को दिखलाएँ, तो वह कदापि उसको घड़ा नहीं कहेगा । उसी घड़े की मिट्टी के होते हुए भी उसको घड़ा न कहने का कारण क्या है ? कारण और कुछ नहीं, यही है कि अब 'उसका आकार घड़े जैसा नहीं है। - इससे यह सिद्ध हो जाता है कि घड़ा स्वयं कोई स्वतंत्र वस्तु नहीं है, बल्कि मिट्टी का एक आकार - विशेष है । परन्तु वह आकार - विशेष मिट्टी से सर्वथा भिन्न नहीं है, उसी का एक रूप है। क्योंकि भिन्न-भिन्न आकारों में परिवर्तित हुई मिट्टी ही जब घड़ा, सिकोरा, सुराही आदि भिन्न-भिन्न नामों से सम्बोधित होती है, तो इस स्थिति में विभिन्न आकार मिट्टी से सर्वथा भिन्न कैसे हो सकते हैं ? इससे स्पष्ट हो जाता है कि घड़े का आकार और मिट्टी दोनों ही घड़े के अपने निज स्वरूप हैं। अब देखना है कि इन दोनों स्वरूपों में विनाशी स्वरूप कौन-सा है और ध्रुव कौन-सा है ? यह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है कि घड़े का वर्तमान में दिखने वाला आकार - स्वरूप विनाशी है। क्योंकि वह बनता और बिगड़ता है। वह पहले नहीं था, Jain Education International For Private & Personal Use Only 4 www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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