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जैन दर्शन की आधारशिला : अनेकान्त ११९
तीसरा कान पकड़ने वाला अन्धा बोला " आँखें काम नहीं देतीं तो क्या हुआ, हाथ तो धोखा नहीं दे सकते। मैंने हाथी को टटोल कर देखा था, वह ठीक छाज (सूप) जैसा था । "
चौथे दाँत पकड़ने वाले सूरदास बोले - " अरे तुम सब झूठी गप्पें मारते हो । हाथी तो कुश यानी कुदाल - जैसा था । "
पाँचवें पैर पकड़ने वाले महाशय ने कहा- -" अरे कुछ भगवान् का भी भय रखो । नाहक क्यों झूठ बोलते हो ? हाथी तो खम्भे जैसा था। मैंने खूब टटोल - टटोल कर देखा है । "
छठे पेट पकड़ने वाले सूरदास गरज उठे - " अरे क्यों बकवास करते हो ? पहले पाप किए तो अन्धे हुए, अब व्यर्थ का झूठ बोल कर क्यों उन पापों की जड़ों में पानी डालते हो ? हाथी तो भाई मैं देखकर आया हूँ। वह अनाज भरने की कोठी - जैसा है । "
अब क्या था, आपस में वाग्युद्ध ठन गया । सब एक-दूसरे की भर्त्सना करने लगे और लगे गाली गलोज करने ।
सौभाग्य से वहाँ एक आँखों वाला सत्पुरुष आ गया । अन्धों की तू-तू, मैं-मैं सुनकर उसे हँसी आ गई। पर, दूसरे ही क्षण उसका चेहरा गम्भीर हो गया। उसने सोचा- " भूल हो जाना अपराध नहीं है, किन्तु किसी की भूल पर हँसना तो घोर अपराध है।'' उसका हृदय करुणार्द्र हो गया। उसने कहा- " बन्धुओं, क्यों झगड़ते हो ? जरा मेरी भी बात सुनो। तुम सब सच्चे भी हो और झूठे भी । तुम में से किसी ने भी हाथी को पूरा नहीं देखा है। एक-एक अवयव को लेकर हाथी की पूर्णता का बखान कर रहे हो। कोई किसी को झूठा मत कहो, एक दूसरे के दृष्टिकोण को समझने का प्रयत्न करो। हाथी रस्से- जैसा भी है, पूँछ की दृष्टि से । हाथी मूसल-उ - जैसा भी है, सूँड़ की अपेक्षा से । हाथी छाज - जैसा भी है, कान की ओर से। हाथी कुदाल - जैसा भी है, दाँतों के लिहाज से । हाथी खम्भे-जैसा भी है, पैरों की अपेक्षा से हाथी अनाज की कोठी - जैसा भी है; पेट की दृष्टि से ।" इस प्रकार समझा-बुझाकर उस सज्जन ने एकान्त की आग में अनेकान्त का पानी डाला । अन्धों को अपनी भूल समझ में आई। और सब शान्त होकर कहने लगे-हाँ, भाई ! तुमने ठीक समझाया। सब अंगों को मिलाने से ही हाथी बनता है, एक-एक अलग-अलग अंग से नहीं !
वस्तुतः अन्धों ने हाथी के एक अंग को देखा और उसी पर जिद करने लग गए। आँख वाले ने सम्पूर्ण हाथी के रूप को उन्हें समझाया, तब कहीं उनका विग्रह समाप्त हो पाया।
संसार में जितने भी एकान्तवादी आग्रही सम्प्रदाय हैं, वे पदार्थ के एक-एक अंश अर्थात् एक-एक धर्म को ही पूरा पदार्थ समझते हैं। इसीलिए दूसरे धर्म वालों से लड़ते-झगड़ते हैं। परन्तु वास्तव में वह पदार्थ नहीं, पदार्थ का एक अंश मात्र है।
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