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________________ ११८ चिंतन की मनोभूमि यह पुत्र भी है। तुम्हारी अपनी अपेक्षा से ही यह पुत्र है, सब लोगों की अपेक्षा से तो नहीं। क्या यह सारी दुनियाँ का पुत्र है ? मतलब यह है कि वह आदमी अपने पुत्र की अपेक्षा से पिता है, अपने पिता की अपेक्षा से पुत्र है, अपने भाई की अपेक्षा से भाई है, अपने विद्यार्थी की अपेक्षा से मास्टर है। इसी प्रकार अपनी-अपनी अपेक्षा से चाचा, ताऊ, मामा, भानजा, पति, मित्र सब है। एक ही आदमी में अनेक धर्म हैं, परन्तु भिन्न-भिन्न अपेक्षा से। यह नहीं कि उसी पत्र की अपेक्षा पिता, उसी की अपेक्षा पुत्र, उसी की अपेक्षा भाई, मास्टर, चाचा, ताऊ, मामा, और भानजा हो। ऐसा नहीं हो सकता। यह पदार्थ-विज्ञान के नियमों के विरुद्ध है। स्याद्वाद को समझने के लिए इन उदाहरणों पर और ध्यान दीजिए-एक आदमी काफी ऊँचा है, इसलिए कहता है कि मैं बड़ा हूँ। हम पूछते हैं-'क्या आप पहाड़ से भी बड़े हैं ?' वह झट कहता है—'नहीं साहब, पहाड़ से तो मैं छोटा हूँ। मैं तो इन साथ के आदमियों की अपेक्षा से कह रहा था कि मैं बड़ा हूँ।' अब एक दूसरा आदमी है। वह अपने साथियों से नाटा है, इसलिए कहता है कि 'मैं छोटा हूँ।' हम पूछते हैं—'क्या आप चींटी से भी छोटे हैं ? वह झट उत्तर देता है—'नहीं साहब, चींटी से तो मैं बड़ा हूँ। मैं तो अपने इन कद्दावर साथियों की अपेक्षा से कह रहा था कि मैं छोटा हँ।' इस उदाहरण से अपेक्षावाद की मूल भावना स्पष्ट हो जाती है कि हर एक चीज छोटी भी है और बड़ी भी। वह अपने से बड़ी चीजों की अपेक्षा छोटी है और अपने से छोटी चीजों की अपेक्षा बड़ी है। इस प्रकार प्रत्येक वस्तु के दो पहलू होते हैं और उन्हें समझने के लिए अपेक्षावाद का यह सिद्धान्त उन पर लागू होता है। दर्शन की भाषा में इसे ही अनेकान्तवाद कहते हैं। सम्पूर्ण हाथी का दर्शन : अनेकान्तवाद को समझने के लिए प्राचीन आचार्यों ने हाथी का उदाहरण दिया है। एक गाँव में जन्म के अन्धे छह मित्र रहते थे। संयोग से एक दिन वहाँ एक हाथी आ गया। गाँव वालों ने कभी हाथी देखा न था, धूम मच गई। अन्धों ने हाथी का आना सुना तो देखने दौड़ पड़े । अन्धे तो थे ही, देखते क्या? हर एक ने हाथ से टटोलना शुरू किया। किसी ने पूँछ पकड़ी.तो किसी ने ढूँड़, किसी ने कान पकड़ा तो किसी ने दाँत, किसी ने पैर पकड़ा तो किसी ने पेट। एक-एक अंग को पकड़ कर हर एक ने समझ लिया कि मैंने हाथी को देख लिया है। इसके बाद जब वे अपने स्थान पर आए, तो हाथी के सम्बन्ध में चर्चा छिड़ी। प्रथम पूँछ पकड़ने वाले ने कहा-"भई, हाथी तो मैंने देख लिया, बिल्कुल मोटे रस्से-जैसा था।" ___ सूंड पकड़ने वाले दूसरे अन्धे ने कहा- "झूठ, बिल्कुल झूठ! हाथी कहीं रस्से-जैसा होता है। अरे, हाथी तो मूसल जैसा था।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001300
Book TitleChintan ki Manobhumi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages561
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size10 MB
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