________________
जैन दर्शन की आधारशिला : अनेकान्त १२१ बाद में भी नहीं रहेगा। जैनदर्शन में इसे पर्याय कहते हैं। और घड़े का जो दूसरा मूल स्वरूप मिट्टी है, वह अविनाशी है, क्योंकि उसका कभी नाश नहीं होता। घड़े के बनने से पहले भी मिट्टी मौजूद थी,घड़े के बनने पर भी वह मौजूद है, और घड़े के नष्ट हो जाने पर भी वह मौजूद रहेगी। मिट्टी अपने आप में पुद्गल-स्वरूपेण स्थायी तत्त्व है, उसे कुछ भी बनना-बिगड़ना नहीं है। जैन-दर्शन में इसे द्रव्य कहते हैं।
इस विवेचन से अब यह स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि घड़े का एक स्वरूप विनाशी है और दूसरा अविनाशी। एक जन्म लेता है और नष्ट हो जाता है, दूसरा सदा सर्वदा बना रहता है, नित्य रहता है। अतएव अब हम अनेकान्तवाद की दृष्टि से यों कह सकते हैं कि घडा अपने आकार की दृष्टि से विनाशी रूप से अनित्य है। और अपने मूल मिट्टी की दृष्टि से—अविनाशी रूप से नित्य है। जैन दर्शन की भाषा में कहें तो यों कह सकते हैं कि घड़ा अपने पर्याय की दृष्टि से
अनित्य है और द्रव्य की दृष्टि से नित्य है। इस प्रकार एक ही वस्तु में परस्पर विरोधी जैसे परिलक्षित होने वाले नित्यता और अनित्यता रूप धर्मों को सिद्ध करने वाला सिद्धान्त ही अनेकान्तवाद है। त्रिपदी:
जगत के सब पदार्थ उत्पत्ति, स्थिति और विनाश इन तीन धर्मों से युक्त हैं। जैन-दर्शन में इनके लिए क्रमशः उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य शब्दों का प्रयोग किया गया है। इसे त्रिपदी भी कहा जाता है। आप कहेंगे—एक वस्तु में परस्पर विरोधी धर्मों का समन्वय कैसे हो सकता है ? इसे समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए। एक सुनार के पास सोने का कंगन है। वह उसे तोड़कर, गलाकर हार बना लेता है। इससे यह स्पष्ट हो गया कि कंगन का नाश होकर हार की उत्पत्ति हो गई। परन्तु इससे आप यह नहीं कह सकते कि कंगन बिल्कुल ही नया बन गया। क्योंकि कंगन और हार में जो सोने के रूप में पुद्गल परमाणु-स्वरूप मूलतत्त्व है, वह तो ज्यों का त्यों अपनी उसी स्थिति में विद्यमान है। विनाश और उत्पत्ति केवल आकार की ही हुई है। पुराने आकार का नाश हुआ है और नये आकार की उत्पत्ति हुई है। इस उदाहरण के द्वारा सोने में कंगन के आकार का नाश, हार के आकार की उत्पत्ति, और सोने की तदवस्थस्थिति—ये तीनों धर्म भली भाँति सिद्ध हो जाते हैं।
इसी प्रकार प्रत्येक वस्तु में उत्पत्ति, स्थिति और विनाश-ये तीनों गुण स्वभावतया समन्वित रहते हैं। कोई भी वस्तु जब नष्ट हो जाती है, तो इससे यह न समझना चाहिए कि उसके मूलतत्त्व ही नष्ट हो गए। उत्पत्ति और विनाश तो उसके स्थूल रूप के होते हैं। स्थूल वस्तु के नष्ट हो जाने पर भी उसके सूक्ष्म परमाणु तो सदा स्थित ही रहते हैं। वे सूक्ष्म परमाणु, दूसरी वस्तु के साथ मिल कर नवीन रूपों का
१. मिट्टी का उदाहरण मात्र समझने के लिए स्थूल रूप से दिया गया है। वस्तुतः मिट्टी भी नित्य
नहीं है। नित्य तो वह पुद्गल परमाणुपुंज है, जिससे मिट्टी का निर्माण हुआ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org