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दर्शनशास्त्र विश्व की सम्पूर्ण सत्ता के रहस्योद्घाटन की अपनी एक धारणा बनाकर चलता है। दर्शनशास्त्र का उद्देश्य है, विश्व के स्वरूप को विवेचित करना । इस विश्व में चित् और अचित् सत्ता का स्वरूप क्या है ? उक्त सत्ताओं का जीवन और जगत् पर क्या प्रभाव पड़ता है ? उक्त प्रश्नों पर अनुसन्धान करना ही दर्शनशास्त्र का एकमात्र लक्ष्य और उद्देश्य है। भारत के समग्र दर्शनों का मुख्य ध्येय बिन्दु है- आत्मा और उसके स्वरूप का प्रतिपादन । चेतन और परम चेतन के स्वरूप को जितनी समग्रता के साथ और जितनी व्यग्रता के साथ भारतीय दर्शन ने समझाने का सफल प्रयास किया है, उतना विश्व के अन्य किसी दर्शन ने नहीं । यद्यपि मैं इस सत्य को स्वीकार करता हूँ कि यूनान के दार्शनिकों ने भी आत्मा के स्वरूप का प्रतिपादन किया है, तथापि वह उतना स्पष्ट और विशद् प्रतिपादन नहीं है, जितना भारतीय दर्शनों का। यूनान के दर्शन की प्रतिपादन - शैली सुन्दर होने पर भी उसमें चेतन और परमचेतन के स्वरूप का अनुसन्धान गम्भीर और मौलिक नहीं हो पाया है। यूरोप का दर्शन तो आत्मा का दर्शन न होकर, केवल प्रकृति का दर्शन है। भारतीय दर्शन में प्रकृति के स्वरूप का प्रतिपादन कम है और आत्मा के स्वरूप का प्रतिपादन अधिक। जड़ प्रकृति के स्वरूप का प्रतिपादन भी एक प्रकार से चैतन्यस्वरूप के प्रतिपादन के लिए ही है। भारतीय. दर्शन जड़ और चेतन — दोनों के स्वरूप को समझने का प्रयत्न करता है और साथ में वह यह भी बतलाने का प्रयत्न करता है कि मानव जीवन का प्रयोजन और मूल्य क्या है । भारतीय दर्शन का अधिक झुकाव आत्मा की ओर होने पर भी, वह जीवनजगत् की उपेक्षा नहीं करता। मेरे विचार में भारतीय दर्शन जीवन और अनुभव की एक समीक्षा है। दर्शन का आविर्भाव विचार और तर्क के आधार पर होता है। दर्शन तर्कनिष्ठ विचार के द्वारा सत्ता और परम सत्ता के स्वरूप को समझाने का प्रयत्न करता है और फिर वह उसकी यथार्थता पर आस्था रखने के लिए प्रेरणा देता है । इस प्रकार भारतीय दर्शन में तर्क और श्रद्धा का सुन्दर समन्वय उपलब्ध होता है। पश्चिमी दर्शन में बौद्धिक और सैद्धान्तिक दर्शन की ही प्रधानता रहती है। पश्चिमी दर्शन स्वतन्त्र चिन्तन पर आधारित है और आप्त प्रमाण की वह घोर उपेक्षा करता है। इसके विपरीत भारतीय दर्शन आध्यात्मिक चिन्तन से प्रेरणा पाता है। भारतीय दर्शन एक आध्यात्मिक खोज है। वस्तुतः भारतीय दर्शन जो चेतन और परम चेतन के स्वरूप की
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जैन दर्शन की समन्वय-परम्परा
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