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________________ १६ इन विविध प्रकारोंसे सद्गुरु साधक- शिष्योंको उपकारी होते हैं । उनके उपकारका वर्णन करनेमें वाणी असमर्थ है, इसलिये भव्य जीवोंको उनके सान्निध्यके लाभका स्वयं अनुभव करनेका अनुरोध है । प्र. ८ : सद्गुरु न मिलें तो क्या करना ? उ. ८ प्र. ९: उ. ९ : अध्यात्मज्ञान- प्रवेशिका निर्दोष स्वभाव, प्रेमपूर्ण व्यवहार, निःस्पृहता, सहजवाणी, कठिन निजचर्या, प्रसन्नता, परहितनिरतता और अप्रमत्त आत्मखोज, उपदेश न देते समय भी निरंतर साधक - शिष्योंको एक अद्भुत प्रेरक बल और ध्येयनिष्ठा प्रदान करते हैं । सत्यकी प्राप्तिके लिए निरंतर खोज चालू रखकर, यथासंभव मुमुक्षुओंके संगमें रहकर, सदाचारपूर्वक तत्त्वका अभ्यास करना । तीर्थयात्रा आदिके समय विशेषरूपसे सद्गुरुकी खोज करनी चाहिए, क्योंकि इस युगमें आत्मज्ञानी महात्मा विशेषकर एकांतस्थानमें रहकर अपनी आत्मसाधना आगे बढ़ाते रहते हैं। एकनिष्ठासे सद्गुरुकी खोज की जाय तो शीघ्र या देरीसे अवश्य गुरुकी भेंट होती है और साधक, सत्पुरुषार्थ द्वारा उत्तम ज्ञानसंयमरूप समाधिके आनंदको प्राप्त करता है । सद्गुरुकी भक्ति क्यों करनी चाहिए ? सद्गुरुकी भक्ति करनेसे उनकी आत्माकी चेष्टाके प्रति वृत्ति रहती है, अपूर्व गुण दृश्यमान होकर अन्य स्वच्छंद मिटता है और सहजमें आत्मबोध होता है । इस प्रकार सर्वतोमुखी कल्याणका कारण होनेसे सद्गुरुकी भक्ति अवश्य करनी चाहिए । For Private & Pernal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001292
Book TitleAdhyatmagyan Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Philosophy
File Size2 MB
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