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गुरुका स्वरूप
प्र. ५ :
उ. ५ :
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बहुत ऊंचा है। आत्माकी सच्ची पहचानसे सत्पुरुष बना जा सकता है परन्तु सद्गुरु होनेके लिए इसके अतिरिक्त, ऊपर बताये वैसे अनेक गुणोंकी आवश्यकता होती है। ऊपर बताये वैसे समस्त लक्षण न हों तो सद्गुरु कह सकते हैं ?
ऊपर बताये वे मार्गप्रभावक विशिष्ट सद्गुरुके लक्षण हैं और वे ही महान गुरुपदको सुशोभित कर सकते हैं। गुणोंमें जितनी न्यूनता (कमी) होती है उतनी सद्गुरुमें भी न्यूनता समझना ।
उ. ६ :
प्र. ६ : सद्गुरुके उपदेश बिना ज्ञान प्राप्त हो सकता है ? सद्गुरुके उपदेश बिना ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता । कोई पूर्वभवके आराधक स्वयं ज्ञान प्राप्त करें ऐसा कह सकते हैं, परन्तु उनको भी पूर्व भवमें सद्गुरुका उपदेश मिला होता है ।
उ. ७ :
प्र. ७: सद्गुरु आत्मज्ञानप्राप्तिमें कैसे उपकारी हैं ?
(अ) प्रथम तो स्वयं आत्मज्ञान प्राप्त किया है, इसलिए उन्हें साधनामार्गका स्वयं अनुभव होता है ।
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(ब) विशिष्ट प्रज्ञावान होनेसे मोक्ष मार्गका सर्वतोमुखी ज्ञान उन्हें होता है । जैसे सूर्य अंधकारको नष्ट कर देता है, वैसे सद्गुरुकी अपूर्व अनुभववाणी द्वारा साधक - शिष्यके अज्ञान- अंधकारका और सर्व प्रकार के संशयोंका व्युच्छेद हो जाता है । (क) दिव्यत्वसे व्याप्त ऐसे श्री सद्गुरुका समस्त व्यक्तित्व अलौकिक होता है । उनकी सौम्य मुद्रा,
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