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________________ गुरुका स्वरूप प्र. ५ : उ. ५ : १५ बहुत ऊंचा है। आत्माकी सच्ची पहचानसे सत्पुरुष बना जा सकता है परन्तु सद्गुरु होनेके लिए इसके अतिरिक्त, ऊपर बताये वैसे अनेक गुणोंकी आवश्यकता होती है। ऊपर बताये वैसे समस्त लक्षण न हों तो सद्गुरु कह सकते हैं ? ऊपर बताये वे मार्गप्रभावक विशिष्ट सद्गुरुके लक्षण हैं और वे ही महान गुरुपदको सुशोभित कर सकते हैं। गुणोंमें जितनी न्यूनता (कमी) होती है उतनी सद्गुरुमें भी न्यूनता समझना । उ. ६ : प्र. ६ : सद्गुरुके उपदेश बिना ज्ञान प्राप्त हो सकता है ? सद्गुरुके उपदेश बिना ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता । कोई पूर्वभवके आराधक स्वयं ज्ञान प्राप्त करें ऐसा कह सकते हैं, परन्तु उनको भी पूर्व भवमें सद्गुरुका उपदेश मिला होता है । उ. ७ : प्र. ७: सद्गुरु आत्मज्ञानप्राप्तिमें कैसे उपकारी हैं ? (अ) प्रथम तो स्वयं आत्मज्ञान प्राप्त किया है, इसलिए उन्हें साधनामार्गका स्वयं अनुभव होता है । 1 (ब) विशिष्ट प्रज्ञावान होनेसे मोक्ष मार्गका सर्वतोमुखी ज्ञान उन्हें होता है । जैसे सूर्य अंधकारको नष्ट कर देता है, वैसे सद्गुरुकी अपूर्व अनुभववाणी द्वारा साधक - शिष्यके अज्ञान- अंधकारका और सर्व प्रकार के संशयोंका व्युच्छेद हो जाता है । (क) दिव्यत्वसे व्याप्त ऐसे श्री सद्गुरुका समस्त व्यक्तित्व अलौकिक होता है । उनकी सौम्य मुद्रा, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001292
Book TitleAdhyatmagyan Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Philosophy
File Size2 MB
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