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________________ अध्यात्मज्ञान-प्रवेशिका (१) परमात्मा (जिन) की भक्ति । (२) गुरुओंका विनय । (३) सद्गुणसंपन्न धर्मी जीवों पर प्रीति । . (४) सत्पात्रको भक्तिपूर्वक दान और अन्यत्र अनुकं पादान । (५) तत्त्वज्ञानका अभ्यास । (६) लिये हुए व्रतोंका दृढतासे पालन । (७) शुद्ध श्रद्धाका अंगीकार करना । प्र. ७ : सद्गृहस्थके संयमधर्मका वैज्ञानिक स्वस्प क्या है? उ. ७ : (अ) पांच अणुव्रत इन बारह व्रतोंको गृहस्थका तीन गुणव्रत एकदेशसंयम कहते हैं । चार शिक्षाव्रत (ब) इन्द्रियोंके, मनके और प्राणीघातके विशेष विशेष संयमको साधनेवाली ग्यारह प्रतिमाएँ या पडिमाएँ भी गृहस्थके संयमका श्रेणीबद्ध निरूपण करती हैं। आचार्योंके लिखे हुए श्रावकाचारके ग्रंथोंके आधार पर आगेके वर्णनमें हम उन्हें देखेंगे । प्र. ८ : गृहस्थधर्मके सम्यक् पालनका अंतिम फल क्या उ. ८ : गृहस्थधर्मकी आराधना करते हुए जब संयमके प्रति अत्यन्त रुचि बढ़ जाती है तब मुनिपदके महाव्रतोंको अंगीकार करके मोक्षपदकी उग्र आराधनासे मोक्षकी प्राप्ति होती है। Jain Education International For Private & P onal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001292
Book TitleAdhyatmagyan Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanandji Maharaj
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Philosophy
File Size2 MB
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