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प्र. १ :
उ. १ :
8.
दान धर्म
दानका क्या अर्थ है
स्वयंके और अन्यके कल्याणके लिये अपनी धनादि संपत्तिको दे देना उसे दान कहते है ।
प्र. २ : दानसे कल्याण कैसे होता है ?
उ. २ :
दान देनेसे स्वयंका लोभ घटे, पात्रता बढ़े, स्वयं पुण्यसंचय हो और साधकोंको सुविधा उपलब्ध होनेसे वे भी धर्म-आराधनामें निश्चित होकर प्रवृत्त हो सकें। प्र. ३ : दानसे समाजकल्याण होता है ?
उ. ३ :
योग्य स्थान पर दान देनेसे, एवं उसका सदुपयोग होनेसे समाजोपयोगी कार्य भी होते हैं । अनाथालय, वनिताविश्राम, कोलेज, शालाएँ, होस्टेल, वृद्धाश्रम, पुस्तकालय, टाउनहोल, व्यायामशालाएँ और निराधार मनुष्यों एवं पशुओंके रहनेके स्थानोंका निर्माण होनेसे समाजसुखकी वृद्धि होती है ।
प्र. ४ : दानके कितने प्रकार कहे हैं ?
उ. ४ :
दानके मुख्य पांच प्रकार कहे हैं
:
आहारदान, विद्यादान, औषधदान, अभयदान ( किसीको अपनेसे भय न पहुँचाना) और वसतिदान (त्यागी पुरुषों को रहनेको स्थान देना) |
प्र. ५ : दाता पुरुषमें कौनसे लक्षण होने चाहिएँ ?
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