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________________ प्रमेयकमलमार्तण्डे न च सदृशपरिणामानामर्थवत्स्वात्मन्यपि समानप्रत्ययहेतुत्वे अर्थानामपि तत्प्रसङ्गः; प्रतिनियतशक्तित्वाद्भावानाम्, अन्यथा घटादेः प्रदीपात्स्वरूपप्रकाशोपलम्भात्प्रदीपेपि तत्प्रकाशः प्रदीपान्तरादेव स्यात् । स्वकारणकलापादुत्पन्नाः सर्वेऽर्था विसदृशप्रत्ययविषयाः स्वभावत एवेत्यभ्युपगमे समानप्रत्ययविषयास्ते तथा कि नाभ्युपगम्यन्ते अलं प्रतीत्यपलापेन ? ॥सामान्यस्वरूपविचारः समाप्तः ॥ __जैन-बिलकुल यही बात विसदृश परिणामों में भी घटित होती है, इसी का खुलासा करते हैं-यह शबल गाय धवल गाय से विसदृश है इत्यादि विसदृश ज्ञान विशेष धर्म से होना मानते हो सो जब स्वयं विसदश या विशेष परिणामों में "यह उससे विशेष है, यह उससे विशेष है" इत्यादि ज्ञान होता है वह किससे होगा, अन्य विशेष से होना माने तो अनवस्था होगी, और उन विसदृश परिणामों में स्वभाव से ही विसदृशता का ज्ञान होता है ऐसा कहो तो सभी गो व्यक्तियों में भी स्वभाव से ही विसदृशता का ज्ञान हो जायगा? फिर विसदृश परिणाम की कल्पना करना व्यर्थ ही है। सदश परिणाम जैसे गो आदि व्यक्तियों में समान प्रत्यय ( सादृश्य ज्ञान ) कराने में निमित्त होते हैं और स्व में भी अपने में भी) समान प्रत्यय कराने में निमित्त होते हैं। वैसे गो आदि पदार्थ भी अपने में समानता का ज्ञान कराने में निमित्त होने चाहिये ऐसा भी नहीं कह सकते क्योंकि पदार्थों की शक्तियां प्रतिनियत हुआ करती हैं, किसी एक में जो शक्ति है वह अन्य में भी होना जरूरी नहीं है, अन्यथा घट आदि पदार्थ दीपक से प्रकाशित होते हैं अतः दीपक भी अन्य दीपक से प्रकाशित होना चाहिये ऐसा कुचोद्य भी कर सकते हैं । सौगत-हम तो सम्पूर्ण पदार्थ अपने कारण कलाप से उत्पन्न होते हैं और स्वभाव से ही विसदृश ज्ञान के हेतु हुअा करते हैं ऐसा मानते हैं ? जैन-तो फिर सभी पदार्थ स्वकारण कलाप से उत्पन्न होकर स्वभाव से ही समान-सदृश ज्ञान के हेतु हुआ करते हैं, ऐसा क्यों नहीं मानते हैं । मानना ही चाहिए। अब इस सामान्य के विषय में अधिक नहीं कहते हैं । । सामान्यस्वरूपविचार समाप्त ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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