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________________ सामान्यस्वरूपविचार: 'तेन समानोयम्' इति प्रत्ययश्च कथं स्यात् ? तयोरेकसामान्ययोगाच्चेत्; न; 'सामान्यवन्तावेत' इति प्रत्ययप्रसङ्गात् । तयोरभेदोपचारे तु 'सामान्यम्' इति प्रत्ययः स्यात्, न पुन: 'तेन समानोयम्' इति । यष्टिपुरुषयोरभेदोपचाराद्यष्टिसहचरितः पुरुषो 'यष्टि:' इति यथा । ननु 'व्यक्तिवत्समानपरिणामेष्वपि समानप्रत्ययस्यापर समानपरिणाम हेतुकत्व प्रसंगादनवस्था स्यात् । तमन्तरेणाप्यत्र समानप्रत्ययोत्पत्तौ पर्याप्तं खण्डादिव्यक्तौ समानपरिणामकल्पनया' इत्यन्यत्रापि समानम् - विसदृशपरिणामेष्वपि हि विसदृशप्रत्ययो यदि तदन्तर हेतुकोऽनवस्था । स्वभावतश्चेत्; सर्वत्र विसदृशपरिणामकल्पनानर्थक्यम् । ४५ अनेक दोष युक्त है अर्थात् इस तरह के सामान्य की किसी भी प्रमाण से सिद्धि नहीं होती है । जैन मीमांसक को पूछते हैं कि "यह उसके समान है" इस प्रकार का ज्ञान किस तरह होगा ? ( क्योंकि सदृश रूप सामान्य आपने माना नहीं ) तुम कहो कि उनमें एक सामान्य का योग है, सो बात भी बनती नहीं, इस तरह मानने से तो "ये दोनों सामान्यवान हैं" ऐसा ज्ञान होगा न कि "यह इसके समान है" ऐसा होगा । मीमांसक - " यह इसके समान है" इस तरह का जो दो व्यक्तियों में प्रतिभास होता है वह उन दोनों में प्रभेद का उपचार करने से होता है ? जैन -- फिर तो " यह सामान्य है" ऐसा प्रतिभास होना चाहिये ? न कि "यह उसके समान है" ऐसा । जिस प्रकार लाठी और पुरुष में प्रभेद का उपचार करके लाठी सहित पुरुष को "लाठी" कह देते हैं । मीमांसक - खण्ड गो मुण्ड गो इत्यादि गो व्यक्तियों में जैन सदृश परिणाम के द्वारा "यह खण्ड गो उस मुण्ड गो के समान है" इस प्रकार का ज्ञान होना स्वीकार करते हैं, सो जब स्वयं सदृश परिणामों में "यह समान है, यह समान है" इस प्रकार का ज्ञान होता है वह किससे होगा, अन्य सदृश परिणाम से होना मानेंगे तो अनवस्था आती है, तथा समान परिणामों में अन्य समान परिणाम के बिना ही समानता का ज्ञान होना स्वीकार करते हैं तो खण्ड, मुण्ड आदि गो व्यक्तियों में भी अन्य समान परिणाम के बिना समानता का ज्ञान हो जायगा फिर उन व्यक्तियों में समान परिणाम की कल्पना करना व्यर्थ ही है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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