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प्रमेयकमलमार्तण्डे अथाऽपचतोऽतीतानागते कर्मणी तथाव्यपदेशज्ञाननिबन्धनं न कर्मत्वम् ; ननु सती, असती वा ते तन्निबन्धनं स्याताम् । न तावत्सती; अतीतस्य प्रच्युतत्वादनागतस्य चालब्धात्मस्वरूपत्वात् । असती च कथं कस्यापि निबन्धनमतिप्रसङ्गात् ? तन्न कर्मत्वमपि तत्प्रत्ययस्य निबन्धनम् ।
नापि व्यक्तिः; अनिष्टेविभिन्नत्वाच्च ।
नापि शक्तिः; सा हि पाचकादन्या, अनन्या वा स्यात् ? अनन्यत्वे तयोरन्यतरदेव स्यात् । अन्यत्वे च अस्या एव कार्योपयोगित्वेन कर्तुरकर्तुत्वानुषङ्गः। अथ पारम्पर्येणोपयोग:-कर्ता हि
शंका-पचन क्रिया को नहीं करने वाले पुरुष के भी "पाचक है" ऐसा नाम तथा ज्ञान होता है, उसमें कारण कर्म सामान्य नहीं है किन्तु उस पुरुष में अतीतकाल में जो पचन कर्म विद्यमान था और आगामी काल में होगा उस कर्म के निमित्त से "यह पुरुष पाचक है" ऐसा नाम तथा ज्ञान हो जाया करता है। मतलब यही है कि वर्तमान काल में भले ही वैसी क्रिया नहीं कर रहा हो किन्तु अतीतादिकाल में होने वाली क्रिया के निमित्त से उस पुरुष को उस नाम से पुकारते हैं, एवं वैसा अनुगत ज्ञान भी हो जाया करता है ?
___समाधान-अच्छा ! तो बताइये कि वह अतीतादि कालीन पचनादि क्रिया सत रूप होकर 'पाचक है" इत्यादि नाम तथा ज्ञान का हेतु है, अथवा असत् रूप होकर हेतु है ? सत् रूप होकर नामादि का हेतु बनती है ऐसा कहना अयुक्त है, क्योंकि अतीतकालीन क्रिया नष्ट हो चुकी है और अनागत क्रिया अभी उत्पन्न ही नहीं हुई है। और असत् रूप क्रिया किस प्रकार किसी नामादि का हेतु बन सकती है ? असत को निमित्त मानने से तो अति प्रसंग दोष पाता है । अतः कर्म सामान्य (क्रिया सामान्य) भी अनुगत ज्ञान का हेतु सिद्ध नहीं होता है ।
पाचकादि पुरुषों में पाचकादिरूप अनुगत ज्ञान का कारण व्यक्ति है ऐसा ततीय पक्ष कहना भी गलत है, क्योंकि प्रथम तो आपने ऐसा माना ही नहीं, और दूसरी बात व्यक्ति तो भिन्न भिन्न रूप अनेक हुआ करती ( करता ) है वह अनुगत एक सदृश ज्ञान का कारण हो ही नहीं सकती (सकता) पाचकादि में अनुगत ज्ञान का हेतु शक्ति है ऐसा चतुर्थ विकल्प भी असत् है । वह शक्ति पाचक पुरुष से अन्य है अथवा अनन्य है ? यदि अनन्य है तो पाचक पुरुष और शक्ति इन दो में से एक ही अवशेष रहेगा।
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