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________________ जय-पराजयव्यवस्था ५६७ दृष्टास्त एवान्यत्र दृश्यन्ते तत्सदृशानामेव दर्शनात् । ततोनेन कस्यचिद्ध तोरनैकान्तिकत्वं क्वचिदनुमानात्प्रवृत्तिचेच्छता तद्धर्मसदृशस्तद्धर्मोनुमन्तव्य इति क्रियाकारणवायुवनस्पतिसंयोगसदृशो वाय्वाकाशसंयोगोपि क्रियाकारणमेव । तथा च प्रतिदृष्टान्तेनाकाशेन प्रत्यवस्थानं प्रतिदृष्टान्तसमः प्रतिषेधः। है, किसी किसी हेतु में अनैकान्तिक दोष होता एवं कहीं अनुमान से प्रवृत्ति होती है ऐसी व्यवस्था चाहने वाले को विवक्षित अनुमान में जो हेतु के धर्म पाये जाते हैं वे तद् धर्म सदृश धर्म पाये जाते हैं ऐसा ही स्वीकार करना होगा। और ऐसा सर्वमान्य होने पर जैसे वायु संयोग वनस्पति में क्रिया का कारण है वैसे आकाश में भी क्रिया का कारण है यह बात सिद्ध होती है, इसलिये ऊपर जो कहा था कि "वनस्पति में होने वाला वायुसंयोग भिन्न जातीय है और आकाश में होने वाला वायुसंयोग भिन्न जातीय है" वह असत् है अतः प्रतिदृष्टांत-प्रतिकूलदृष्टांत स्वरूप आकाश से दोष उपस्थित करना प्रति दृष्टांतसमा जाति दोष है । जातिवादी के इस लंबे चौड़े बखान में भी कुछ तथ्य नहीं अन्य जाति भेदों के समान यह प्रतिदृष्टांतसमा जाति भी दोषाभास मात्र है इसीको दिखाते हैं-यदि प्रतिवादी यह कहता है कि जिसतरह तेरा लोष्टादि दृष्टांत है मेरा भी उसतरह आकाशादि दृष्टांत है, तब तो व्याघात दोष हुआ, वह व्याघात ऐसा होगा कि एक व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त दृष्टांत में दृष्टांतपना सिद्ध होने पर उसके प्रतिकलरूप उपस्थित किया गया दृष्टांत अब दृष्टांत ही सिद्ध होगा, दोनों में दृष्टांतपना तो बन नहीं सकता। भावार्थ-साध्य की सिद्धि में अनुकल और प्रतिकल हो रहे लोष्ट या आकाश में से एक का दृष्टांतपना स्वीकार करने पर बचे हुए दूसरे का अदृष्टांतपना ही सिद्ध होगा, एक साथ अनुकूल, प्रतिकूल दोनों दृष्टांतों में तो समीचीन दृष्टांतपने का विरोध है। प्रतिवादी ने स्वमुख से ही कह दिया कि जैसा तेरा दृष्टांत है वैसा मेरा दृष्टांत है, एतावता उसने वादो के दृष्टांत को अंगीकार किया माना जायगा, ऐसी दशा में अब प्रतिवादी प्रतिकूलदृष्टांत कथमपि बोल नहीं सकता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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