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जय-पराजयव्यवस्था
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अस्याश्च दूषणाभासत्वम्-यथैव हि रूपं दिदृक्षूणां प्रदीपोपादानं प्रतीयते न पुनः स्वयं प्रकाशमानं प्रदीपं दिदृक्षणाम् । तथा साध्यस्यात्मन: क्रियावत्त्वस्य प्रसिद्ध्यर्थं लोष्टस्य दृष्टान्तस्य ग्रहणमभिप्रेतं न पुनस्तस्यैव सिद्ध्यर्थं साधनान्तरस्योपादानम्, वादि प्रतिवादिनोरविवादविषयस्य दृष्टान्तस्य दृष्टान्तत्वोपपत्तेस्तत्रसाधनान्तरस्याफलत्वादिति ।
प्रतिदृष्टान्तरूपेण प्रत्यवस्थानं प्रतिदृष्टान्तसमा जातिः । यथात्रैव साधने प्रयुक्त प्रतिष्टान्तेन परः प्रत्यवतिष्ठते-क्रिया-हेतुगुणाश्रयमाकाशं निष्क्रियं दृष्ट मिति । का पुनराकाशस्य क्रियाहेतुगुणः ? संयोगो वायुना सह । कालत्रयेप्यसम्भवादाकाशे क्रियायाः । न क्रियाहेतुर्वायुना संयोगः, इत्यप्यसारम् ;
प्रसंगसमा जाति-अनुमान में दिये गये दृष्टांत में भी साध्य की विशिष्टरूप से जानकारी कराने के लिये हेतु कहना चाहिये, इसप्रकार का प्रसङ्ग उपस्थित करना प्रसंगसमा जाति है। जैसे इसी उपर्युक्त अनुमान में हेतु के प्रयुक्त होने पर प्रतिवादी उलाहना देता है कि क्रिया के हेतुरूप गुण के योग से लोष्ट क्रियावान् है, इसतरह लोष्ट का जो दृष्टांत दिया था उसमें हेतु घटित नहीं किया, बिना हेतु के तो साध्य सिद्धि नहीं होती।
___ यह प्रसंगसमा नामका जाति दूषण भी पूर्व को जाति दूषण की तरह दूषणाभास है अर्थात् वास्तविक दूषण नहीं है। इसीको बतलाते हैं-किसी वस्तु के रूप को देखने के इच्छुक पुरुष दीपक को ग्रहण करते हुए पाये जाते हैं, किन्तु स्वयं प्रकाशमान दीपक को देखने के लिये तो दीपक का ग्रहण नहीं करते हैं। दूसरी बात यह है कि साध्यरूप प्रात्मा में क्रियापना साधने के लिये लोष्टरूप दृष्टांत का ग्रहण होता हो है, किन्तु उसी दृष्टांत के सिद्धि के लिये तो अन्य हेतु ग्रहण करना कहीं भी नहीं माना । क्योंकि वादी और प्रतिवादी दोनों का जिसमें विवाद नहीं है अविवाद का विषय है उसी दृष्टांत के दृष्टांतपना घटित हो सकता है। ऐसे सुप्रसिद्ध हुए दृष्टांत में पुनः अन्य हेतु को काई सफलता नहीं, अर्थात् उसमें हेतु देना निष्फल है ।
प्रतिदृष्टांतसमा जाति - प्रतिदृष्टांतरूप से अर्थात् प्रतिकूल दृष्टांत द्वारा दोष उपस्थित करना प्रतिदृष्टांतसमा जाति है। जैसे इसी उपयुक्त क्रिया हेतु गुणाश्रय होने से प्रात्मा सक्रिय है इत्यादि अनुमान प्रयुक्त होने पर प्रतिवादी प्रतिकूल दृष्टांत से दूषण उपस्थित करता है-ग्राकाश क्रिया के हेतुरूप गुण का प्राश्रय है फिर भी निष्क्रिय देखा जाता है । कोई पूछे कि आकाश में क्रिया का हेतुरूप गुण कौनसा है ? तो हम
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