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________________ ५४६ तदाभासस्वरूपविचारः प्रथेदानीं दृष्टान्ताभासप्रतिपादनार्थ दृष्टान्तेत्याधुपक्रमते । दृष्टान्तो ह्यन्वयव्यतिरेकभेदाद्विधेत्युक्तम् । तद्विपरीतस्तदाभासोपि तद्भदाद्विधैव द्रष्टव्यः । तत्र दृष्टान्ताभासा अन्वये असिद्धसाध्यसाधनोभयाः ।। ४० ॥ अपौरुषेयः शब्दोऽमूर्तत्वादिन्द्रियसुख-परमाणु-घटवदिति ॥ ४१ ।। इन्द्रियसुखे हि साधनममूर्त्तत्वमस्ति, साध्यं त्वपौरुषेयत्वं नास्ति पौरुषेयत्वात्तस्य । परमाणुषु तु साध्यमपौरुषेयत्वमस्ति, साधनं त्वमूर्तत्वं नास्ति मूर्तत्वात्तेषाम् । घटे तूभयमपि पौरुषेयत्वान्मूतत्वाच्चास्येति । न केवलमेत एवान्वये दृष्टान्ताभासा: । किन्तु कारणवश इसतरह का सदोष अनुमान प्रयोग कर बैठे तो उसे पक्ष के दोष से ही दूषित ठहराया जाता है । इसप्रकार यहां तक हेत्वाभास का वर्णन किया। अब इस समय दृष्टान्ताभास का प्रतिपादन करते हैं, दृष्टांत के अन्वय दृष्टांत और व्यतिरेक दृष्टांत इसप्रकार दो भेद पहले बताये थे, अत: दृष्टांताभास भी दो प्रकार का है, उसमें पहले अन्वय दृष्टांताभास को कहते हैं दृष्टांताभासा अन्वये प्रसिद्धसाध्यसाधनोभयाः ।।४०।। अर्थ--अन्वय-जहां जहां साधन [धूम होता है वहां वहां साध्य [अग्नि] होता है, इसप्रकार की व्याप्ति दिखलाकर दृष्टांत दिया जाता है उस दृष्टांत में यदि साध्य न हो या साधन न हो अथवा उभय-दोनों नहीं हो वे सबके सब अन्वय दृष्टांताभास हैं, इनका उदाहरण देते हैं अपौरुषेयः शब्दोऽमूर्त्तत्वादिन्द्रियसुखपरमाणुघटवत् ।।४।। अर्थ-शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमर्त्त है, जैसे इंद्रिय सुख अमूर्त होने से अपौरुषेय है, अथवा परमाणु अमूर्त होने से अपौरुषेय है अथवा जिसप्रकार घट अमूर्त होने से अपौरुषेय है, इसप्रकार किसी ने अनुमान का प्रयोग किया इसमें शब्द को अपौरुषेय सिद्ध करने के लिये अमूर्तत्व हेतु दिया है और दृष्टांत तीन दिये है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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