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________________ ५५० प्रमेयकमलमार्तण्डे विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्तम् ॥ ४२ ॥ विपरीतोऽन्वयो व्याप्तिप्रदर्शनं यस्मिन्निति । यथा यदपौरुषेयं तदमूर्तमिति । 'यदमूर्तं तदपोरुषेयम्' इति हि साध्येन व्याप्ते साधने प्रदर्शनीये कुतश्चिद्वयामोहात् 'यदपौरुषेयं तदमूर्तम्' इति प्रदर्शयति । न चैवं प्रदर्शनीयम् विद्युदादिनाऽतिप्रसङ्गादिति ॥ ४३ ॥ विद्यु द्वनकुसुमादौ ह्यऽपौरुषेयत्वेप्य मूर्तत्वं नास्तीति । उनमें प्रथम दृष्टान्त इन्द्रिय सुखका है इन्द्रिय सुख में अमतत्व हेतु [ साधन ] तो है किन्तु साध्य जो अपौरुषेय है वह नहीं, क्योंकि इंद्रिय सुख पुरुषकृत ही है अतः यह दृष्टान्त साध्यविकल ठहरता है। दूसरा दृष्टान्त परमाणु का है, इसमें साध्य-अपौरुषेयत्व तो है किन्तु साधन-अमर्त्तत्व नहीं है अतः यह दृष्टान्त साधन विकल कहलाया । तीसरा दृष्टान्त घटका है, इसमें साध्य-साधन अपौरुषेय और अमूतत्व दोनों ही नहीं है, घट तो पौरुषेय और मूर्त है अतः घट दृष्टांत उभयविकल है। और भी अन्वय दृष्टान्ताभास को बतलाते हैं विपरीतान्वयश्च यदपौरुषेयं तदमूर्तम् ॥४२।। अर्थ-जिस दृष्टान्त में विपरीत अन्वय दिखाया जाता है वह भी दृष्टान्ताभास कहलाता है, जैसे कहना कि जो अपौरुषेय होता है वह अमूर्त होता है । विपरीत रूप से अन्वय व्याप्ति है जिसमें उसे विपरीतान्वय कहते हैं, इसप्रकार विपरीतान्वय शब्दका विग्रह है। जो अमूर्त है वह अपौरुषेय होता है ऐसा सही अन्वय दिखाना चाहिए अर्थात साध्य के साथ साधन की व्याप्ति बतलानी थी सो किसी व्यामोह के कारण उलटा अन्वय कर बैठता है कि जो अपौरुषेय है वह अमर्त होता है, सो ऐसा कहना ठीक क्यों नहीं इस बात को कहते हैं विद्यदादिनातिप्रसंगात् ।। ४३ ॥ अर्थ-यदि जो अपौरुषेय है वह अमूर्त होता है ऐसा निश्चय करेंगे तो विद्युत्-बिजली आदि पदार्थ के साथ अतिप्रसंग प्राप्त होगा, अर्थात् विद्युत्, वनके पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001278
Book TitlePramey Kamal Marttand Part 3
Original Sutra AuthorPrabhachandracharya
AuthorJinmati Mata
PublisherLala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi
Publication Year
Total Pages762
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Nyay
File Size16 MB
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