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प्रमेयकमलमार्तण्डे तच्चाऽनित्यासर्वगतस्वभावमभ्युपगन्तव्यम् ; नित्यसर्वगतस्वभावत्वेऽर्थक्रियाकारित्वायोगात् । न खलु गोत्वं वाहदोहादावुपयुज्यते, तत्र व्यक्तीनामेव व्यापाराभ्युपगमात् ।
स्वविषयज्ञानजनकत्वेपि व्यापारोस्य केवलस्य, व्यक्तिसहितस्य वा ? केवलस्य चेत्; व्यक्त्यन्त रालेप्युपलम्भप्रसङ्गः । व्यक्तिसहितस्य चेत्; किं प्रतिपन्नाखिलव्यक्तिसहितस्य, अप्रतिपन्नाखिलव्यक्तिसहितस्य वा ? तत्राद्यपक्षोऽयुक्ता; असर्वविदोऽखिलव्यक्तिप्रतिपत्तेरसम्भवात् । द्वितीयपक्षे पुन: एकव्यक्तेरप्यग्रहणे सामान्यज्ञानानुषङ्गः। प्रतिपन्नकतिपयव्यक्तिसहितस्य जनकत्वे तु तस्य ताभिरुपकार : क्रियते, न वा ? प्रथमपक्षे सामान्यस्य व्यक्तिकार्यता, तदभिन्नोपकारकरणात् । ततो
___ यौगादि परवादी गोत्व आदि सामान्य धर्म को नित्य तथा व्यापक मानते हैं सो ऐसा यह गोत्वादि सामान्य अपने विषय में प्रतिभास कराता है वह अकेला ही “यह गो है" इत्यादि रूप प्रतिभास कराने में समर्थ है अथवा व्यक्ति [खण्ड, मण्डादि] सहित होकर प्रतिभास कराने में समर्थ है ? केवल गोत्वादि सामान्य ही स्वविषयक ज्ञान पैदा कराता है ऐसा प्रथम पक्ष मानेंगे तो गो आदि व्यक्तियों के अन्तराल में भी गोत्व प्रादि सामान्य उपलब्ध होने लगेगा, क्योंकि व्यक्ति के बिना ही सामान्य स्वविषय में ज्ञान को उत्पन्न कराता है ऐसा मान लिया है । द्वितीय विकल्प की बात कहें कि व्यक्ति सहित जो गोत्वादि सामान्य है वह स्वविषय का ज्ञान कराता है तो इसमें पुनः दो प्रश्न होवेंगे कि वह सामान्य जिस पुरुष ने संपूर्ण व्यक्तियों के सामान्य को जान लिया है उसके लिये स्वविषयक ज्ञान का हेतु होता है अथवा बिना जाने हुए पुरुष के लिये हेतु होता है ? प्रथम पक्ष कहो तो ठीक नहीं है, क्योंकि असर्वज्ञ [अल्पज्ञ] पुरुष को संपूर्ण व्यक्तियों को जानना ही अशक्य है तो उनमें स्थित सामान्य को कैसे जाना जा सकता है ? अर्थात् नहीं जाना जा सकता। संपूर्ण गो आदि व्यक्तियों को नहीं जाने हुए पुरुष के प्रति वह सामान्य स्वविषय में ज्ञान उत्पन्न कराता है ऐसा दूसरा पक्ष कहो तो एक भी व्यक्ति को बिना जाने सामान्य का प्रतिभास हो सकेगा, अर्थात व्यक्ति को बिना ग्रहण किये सामान्य जानने में आवेगा, किन्तु ऐसा नहीं होता है। शबली अादि गो व्यक्ति को बिना जाने गोत्व सामान्य जाना जाय ऐसा कहीं देखा नहीं जाता है। कुछ व्यक्तियों को जाने हुए पुरुष के प्रति सामान्य स्वविषयक ज्ञान पैदा कराता है ऐसा स्वीकार करे तो शंका होती है कि उक्त ज्ञात हुए कतिपय व्यक्तियों द्वारा सामान्य का उपकार किया जाता है अथवा नहीं किया जाता है ? यदि किया
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