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समवायपदार्थविचारः नापि विशेषणभावात् ; सम्बन्धान्तराभिसम्बद्धार्थेष्वेवास्य प्रवृत्तिप्रतीतेर्दण्डविशिष्टः पुरुष इत्यादिवत्, अन्यथा सर्वं सर्वस्य विशेषणं विशेष्यं च स्यात् । समवायादिसम्बन्धानर्थक्यं च, तदभावेपि गुणगुण्यादिभावोपपत्त: । समवायस्य समवायि विशेषणतानुपपत्तिश्च, अत्यन्तमर्थान्तरत्वेनातधर्मत्वादाकाशवत् । न खलु 'संयुक्ताविमो' इत्यत्र संयोगिधर्मतामन्तरेण संयोगस्य तद्विशेषणता दृष्टा । न च समवायसमवायिनां सम्बन्धान्तराभिसम्बद्धत्वम् ; अनभ्युपगमात् ।
किञ्च, विशेषणभावोप्येतेभ्योत्यन्तं भिन्नस्तत्रैव कुतो नियाम्येत ? समवायाच्चेत् ; इतरेतरा
क्योंकि आपके सिद्धांत में समवाय एक ही माना है । "तत्वं भावेन व्याख्यातं" भाव या सत्तारूप पदार्थ एक ही होता है ऐसी आपकी मान्यता है ।
विशेषण भाव से समवाय में सम्बन्धपना होता है ऐसा तीसरा विकल्प भी असत् है, विशेषण भाव की प्रवृत्ति तो सम्बन्धान्तर से अभिसंबद्ध हए पदार्थों में हो हुआ करती है, अर्थात् जिसमें पहले से ही संयोगादि कोई संबंध है ऐसे पदार्थों का ही विशेषणभाव देखा जाता है, जैसे "दण्ड विशिष्ट पुरुष है" इत्यादि कथन में दण्ड और पुरुष संयोग युक्त होने पर दण्ड पुरुष का विशेषण बनता है, संयोग के बिना विशेषणभाव माना जाय तो सभी पदार्थों के सभी विशेषण और विशष्य बन जायेंगे। तथा बिना संयोगादि के विशेषण-विशेष्यभाव हो सकता है तो समवायादि संबंध मानना व्यर्थ ही है । उसके अभाव में भी गुण-गुणी, अवयव-अवयवी इत्यादि भाव बन सकते हैं । समवाय के समवायोका विशेषणपना भी नहीं हो सकता, क्योंकि अत्यन्त भिन्न होने से प्रतधर्मस्वरूप है । अर्थात् समवाय विशेषण है और समवायी विशेष्य है ऐसा नहीं कह सकते क्योंकि ये सर्वथा भिन्न है । जैसे आकाश अत्यन्त भिन्न होने के कारण विशेषण नहीं बनता। ये दो पदार्थ संयुक्त हैं-परस्पर में मिले हैं इसतरह का जो विशेषणपना देखा जाता है वह संयोग के संयोगी द्रव्य का धर्मपना प्राप्त हुए बिना नहीं हो सकता । तथा समवाय और समवायी के संबंधान्तर से अभिसम्बन्धपना होना आपने स्वीकार नहीं किया प्रतः वे सम्बन्धान्तर से अभिसम्बद्ध हुए हैं ऐसा कहना अशक्य है।
तथा समवाय का विशेषण भाव जब इन समवायी द्रव्यों से अत्यंत भिन्न है तब समवायो द्रव्यों में ही समवाय का विशेषण भाव रहता है ऐसा नियम, किस
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