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प्रमेयकमलमार्तण्डे मात्रम् ; हेतोरसिद्धत्वात् । न खलु स्वहेतोरुत्पन्नाऽन्योन्यज्यावृत्तार्थव्यतिरेकेणार्थान्तरभूतस्य पृथक्त्वस्याध्यक्षे प्रतिभासोस्ति, अत एवोपलब्धिलक्षणप्राप्तस्यास्यानुपलम्भादसत्त्वम् ।
___ रूपादिगुणेषु च 'पृथक्' इतिप्रत्ययप्रतीतेरनेकांतः । न हि तत्र पृथक्त्वमस्ति गुणेषु गुणा. सम्भवात् । न च गुणेषु 'पृथक्' इति प्रत्ययो भाक्तः; मुख्यप्रत्ययाविशिष्टत्वात् । न च स्वरूपेणा (ण) व्यावृत्तानामर्थानां पृथक्त्वादिवशात्पृथग्रूपता घटते; भिन्नाभिन्नपृथग्रूपताकरणेऽकिञ्चित्करत्वात्। भेदपक्षे हि सम्बन्धासिद्धिः । अभेदपक्षे तु पृथग्रूपस्यार्थस्यैवोत्पत्तेरर्थान्तरभूतपृथक्त्वगुणकल्पनावैयर्थ्यम् । प्रयोगः-ये परस्परव्यावृत्तात्मानस्ते स्वव्यतिरिक्तपृथक्त्वानाधारा: यथा रूपादयः, परस्परव्यावृत्तात्मानश्च घटादयोर्था इति ।
का अनुमान वाक्य भी प्रयुक्त है, इस अनुमान का हेतु प्रसिद्ध दोष युक्त है, इसी का खुलासा करते हैं-"पृथक्त्व गुण घट आदि के ज्ञान से ग्राह्य न होकर दूसरे विलक्षण ज्ञान से ग्राह्य होता है" ऐसा जो हेतु दिया है वह गलत है, घट पट आदि पदार्थ अपने अपने कारण कलाप से उत्पन्न होकर स्वयं ही परस्पर से व्यावृत्त हो जाया करते हैं, यही इनका पृथक्त्वपना है इससे अतिरिक्त पृथक्त्व प्रत्यक्ष ज्ञान में प्रतिभासित नहीं होता, अतः उपलब्ध होने योग्य होकर भी अनुपलब्ध होने से इसका अभाव ही है। रूप रस आदि गुणों में भी "यह पृथक् है" [ यह रूप इससे पृथक् है ] इसतरह प्रतोति होने से उपर्युक्त हेतु अनैकान्तिक भी है । इस ज्ञान में पृथक्त्व कारण नहीं है क्योंकि गुणों में गुरण नहीं रहते हैं । गुणों में होने वाला पृथकपने का प्रतिभास गौण है ऐसा भी नहीं कहना, क्योंकि यह प्रतिभास भी मुख्य के समान अस्खलित है।।
वैशेषिक-घट, पट अादि पदार्थ यद्यपि अपने स्वरूप से व्यावृत्त हैं फिर भी पृथक्त्व गुण के कारण इनमें पृथकपने का व्यवहार एवं ज्ञान होता है ?
जैन-इसतरह नहीं कहना, इसमें फिर प्रश्न होता है कि घट पट आदि को पृथक्त्व गुण पृथक् करता है वह भिन्न रहकर या अभिन्न रहकर करता है ? भिन्न रहकर करना अशक्य है क्योंकि उसका घटादि से सम्बन्ध ही नहीं है। अभिन्न रहकर करता है तो इसका अर्थ यह निकला कि पदार्थ स्वयं ही पृथकरूप उत्पन्न हुआ है, उसमें फिर से पृथक्त्व गुण की कल्पना करना व्यर्थ है । अनुमान प्रयोग जो परस्पर में व्यावृत्त स्वरूप वाले होते हैं वे पदार्थ अपने से अतिरिक्त किसी पृथक्त्व गुण के अाधारभूत नहीं होते हैं, जैसे रूपादि गुण पृथक्त्व के आधार नहीं हैं, घट, पट, गृह, वृक्षादि पदार्थ
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