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प्रमेय कमलमार्तण्डे
अप्राप्तिपूर्विका प्राप्तिः संयोगः । प्राप्तिपूर्विका चाप्राप्तिविभागः । तौ च द्रव्येषु यथाक्रम संयुक्तविभक्तप्रत्ययहेतू।
'इदं परमिदमपरम्' इति यतोऽभिधानप्रत्ययौ भवतस्तद्यथाक्रमं परत्वमपरत्वं च । बुद्ध्यादयः प्रयत्नान्ताश्च गुणा: सुप्रसिद्धा एव ।
गुरुत्वं च पृथिव्युदकवृत्ति पतन क्रियानिबन्धनम् । द्रवत्वं तु पृथिव्युदकज्वलन वृत्तिः स्प (स्य) न्दनहेतुः । पृथिव्यनलयोनॆ मितिकम् । अपां सांसिद्धिकम् । स्नेहस्त्वऽम्भस्येव स्निग्धप्रत्यय हेतुः।
संस्कारस्तु त्रिविधो वेगो भावना स्थितस्थापक श्चेति । तत्र वेगाख्यः पृथिव्यप्तेजोवायुमनस्सु मूर्त्तद्रव्येषु प्रयत्नाभिघात विशेषापेक्षात्कर्मण: समुत्पद्यते । नियतदिक्रियाप्रति ब (प्रब) न्धहेतु: स्पर्श
अप्राप्तिपूर्वक होनेवाली प्राप्ति को संयोग कहते हैं। प्राप्त होकर अप्राप्त हो जाने को विभाग कहते हैं, ये दोनों सयोग-विभाग गुण द्रव्यों में क्रम से संयुक्त और विभक्त ज्ञान के कारण हैं ।
यह पर है, यह अपर है ऐसा अभिधान तथा ज्ञान जिससे हो वह क्रमश: परत्व और अपरत्व गुण कहलाता है । बुद्धि से लेकर प्रयत्न तक के छह गुण सुप्रसिद्ध हो हैं।
गुरुत्वनामा गुरण पृथिवी और जल में रहता है, यह गुण पतन [ गिरना ] क्रिया का कारण है । द्रवत्वनामा गुण पृथिवी, जल और अग्नि में रहता है, और स्यन्दन-[झरना] का कारण है । पृथिवी और अग्नि में जो द्रवत्व देखने में आता है वह किसी निमित्त से होता है अतः अनित्य है और जल में जो द्रवत्व है वह सांसिद्धिक है [स्वतः ही है] अतः नित्य है। स्नेह गुण केवल जल में है और यह स्निग्धता का ज्ञान कराता है।
संस्कारनामा गुण तीन प्रकार का है, वेग, भावना, स्थित स्थापक । वेग नामका गुण पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और मन जो कि मूर्त अर्थात् असर्वगत द्रव्य हैं उनमें प्रयत्न की अभिघात विशेष को अपेक्षा से होने वाली जो क्रिया या कर्म है उससे उत्पन्न होता है। यह वेग नियत दिशा में क्रिया का प्रबंध कराता है तथा स्पर्शवान्
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